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________________ - अग्नि-परीक्षा रंग-रंगीले झाड़ों से, रंगदार रोशनी झड़ती थी। पड़ती थी रानी के मुख पर, सुन्दरता अति बढ़ती थी । नाना भाँति सुगन्ध महल में, मादकता बरसाता काम-सरोवर अपनी पूरी, सीमा पर लहराता था । रानी ने जो सेठ सुदर्शन, देखा तो बस चकित रही । कामदेव साक्षात अमित, सौन्दर्य-सुधा थी बरस रही । आँखें झपकी एक बार ही, ___ सह न सकी वह तेज प्रचंड । आधा तो बस दर्शन से ही, हुआ विलज्जित रूप - घमंड ।। साहस करके फिर भी अपना, मोहन - जाल बिछाती है । प्रेमभाव से गद्गद् हो, चरणों में शीश झुकाती है । "प्राणनाथ ! मैं बहुत दिनों से, तव दर्शन की इच्छुक थी । जलधर के प्रति चातक जैसी, निश-दिन रहती उत्सुक थी ॥ मुझे आपका एक सखी ने, मोहन - रूप सुनाया था । - ५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001218
Book TitleDharmavir Sudarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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