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सर्ग सात
अग्नि-परीक्षा
धार्मिक जन निज धर्म में रहते यों संलग्न । पापात्मा आकर वृथा करते नर्तन नग्न ।।
सेठ सुदर्शन जी ने इस विधि,
प्रभु का ध्यान लगाया है। रंभा ने उस ओर दंभ का,
पूरा जाल बिछाया है ।। देख लिया था दिन में ही सब,
अवसर मायाचारी का। चली सेठ को सिर पर रख,
आगया नाश मक्कारी का ॥ ध्यान-मग्न था सेठ,
प्रतिज्ञा-पालन में संलग्न रहा । बोला नहीं जरा भी,
. पहले जैसा ही दृढ़ मौन रहा ॥ द्वारपाल थे पहले भ्रम में,
नहीं बिचारे कुछ बोले । धोखे में फँस हो जाते हैं,
____ चतुर विचक्षण भी भोले ॥
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