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धर्म-वीर सुदर्शन पाप-पंक से पूरित मेरा,
हृदय पवित्र बना जाओ ।
एक प्रहर तक नाथ ! तुम्हारा,
ध्यान - हृदय में लाऊँगा । मौन रहूँगा, तुम्हें रदूँगा,
जग की ओर न जाऊँगा ॥"
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