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न्याय मार्ग का पक्ष न छोड़,
वज्र - संकल्प
दुश्मन हो सारा जमाना, जमाना प्रभू० !
उत्कट संकट हँस हँस झेलूँ,
प्राणी - मात्र को
अविचल धैर्य बँधाना, बँधाना प्रभू० !
सुख उपजाऊँ,
चाहूँ न चित्त दुखाना, दुखाना प्रभू० !
मैं भी तुम सा जिन बन जाऊँ,
परदा दुई का हटाना, हटाना प्रभू० ! 'अमर' निरन्तर आगे बढ़ें मैं,
कर्तव्य - वीर बनाना, बनाना प्रभू० !
सेठ प्रार्थना के पल-पल में,
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सद्भावों में लीन
भक्त - हृदय में भक्ति भाव का, दिव्य स्रोत उन्मुक्त
-
" वीतराग तव शरण जगत में, एकमात्र सुखदायी
घोर दुःखों के आने पर भी, होता तू ही
भक्तों का जो कुछ गौरव है, मात्र तुम्हारी दीन-बन्धु ! मुझको तो तुमसे,
आ जाओ मन-मन्दिर में,
सहायी
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करुणा
रहा ।
बहा
बढ़कर और न शरणा है ॥
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है ।
है ॥
हे नाथ ! शीघ्रतम आ जाओ ।
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