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________________ न्याय मार्ग का पक्ष न छोड़, वज्र - संकल्प दुश्मन हो सारा जमाना, जमाना प्रभू० ! उत्कट संकट हँस हँस झेलूँ, प्राणी - मात्र को अविचल धैर्य बँधाना, बँधाना प्रभू० ! सुख उपजाऊँ, चाहूँ न चित्त दुखाना, दुखाना प्रभू० ! मैं भी तुम सा जिन बन जाऊँ, परदा दुई का हटाना, हटाना प्रभू० ! 'अमर' निरन्तर आगे बढ़ें मैं, कर्तव्य - वीर बनाना, बनाना प्रभू० ! सेठ प्रार्थना के पल-पल में, Jain Education International सद्भावों में लीन भक्त - हृदय में भक्ति भाव का, दिव्य स्रोत उन्मुक्त - " वीतराग तव शरण जगत में, एकमात्र सुखदायी घोर दुःखों के आने पर भी, होता तू ही भक्तों का जो कुछ गौरव है, मात्र तुम्हारी दीन-बन्धु ! मुझको तो तुमसे, आ जाओ मन-मन्दिर में, सहायी ५२ करुणा रहा । बहा बढ़कर और न शरणा है ॥ For Private & Personal Use Only 11 है । है ॥ हे नाथ ! शीघ्रतम आ जाओ । www.jainelibrary.org
SR No.001218
Book TitleDharmavir Sudarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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