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वज्र-संकल्प
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पद्मासन सानन्द लगा दृढ़, ..
पौषध व्रत अपनाया
है ॥
वीर प्रभु की साक्षी से की,
अटल प्रतिज्ञा अंगीकार । गूंज उठी मन-मन्दिर में,
जिन-धर्म - विपंची की झनकार ॥
"भगवन् ! अब से सूर्योदय तक,
__ तजता . हूँ चारों आहार । काम, क्रोध, मद, लोभ, मृषादिक,
तजूं अठारह पापाचार ॥ संसारी गृह-झंझट से विश्रान्ति,
आज कुछ लेता हूँ । आत्म-साधना में तन मन का,
__योग क्लेश - हर देता हूँ ॥
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लेशमात्र भी पाप कर्म का,
भाव न मन में लाऊँगा । अन्तस्तल में धर्म ध्यान का, ...
__ सुन्दर साज सजाऊँगा ॥ चाहे कुछ भी संकट आए,
स्वीकृत पंथ न छोड़ेंगा । फँसकर सुखद प्रलोभन में भी, ..
कभी न निज-व्रत तोगा ॥" पौषध व्रत को सफल बनाते,
दिन सानन्द समाप्त किया ।
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