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________________ धर्म-वीर सुदर्शन गुप्त रूप से रह जाने पर, राज - दण्ड सहना पड़ता ॥ और नगर में इधर नारियाँ, निज स्वातंत्र्य मनाती थीं । रंगरेलियाँ करतीं हिलमिल, प्रेम-पयोधि बहाती थीं ॥ सेठ सुदर्शन जी ने इस दिन, परम पुण्य संकल्प लिया । भोग-मार्ग तज आत्म-शुद्धि, के अर्थ त्याग का मार्ग लिया ॥ अन्तिम तिथि है चतुर्मास की, __ पौषध का व्रत करना है । कर रक्खा है गुरुवर से प्रण, पाप - पंक सब हरना है ॥ राज के जा पास नगर में, रहने की स्वीकृति ले ली । धन्य सुदर्शन धर्म-कौमुदी, ___ उत्सव की क्रीड़ा खेली ॥ शान्त, कान्त, एकान्त स्थान में, पौषधशाला सुन्दर थी। वातावरण शान्त था, कोई खटपट थीं न गड़बड़ थी। काष्ठ-पट्ट पर शुद्ध स्वदेशी, आसन विमल बिछाया है । Roman - - ४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001218
Book TitleDharmavir Sudarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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