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वज्र - संकल्प
सेठ सुदर्शन का इधर, सुनिए वर वृतान्त; कैसे मृदु जीवन बना, वज्र - कठिन उत्क्रान्त | भोग रहे थे सेठजी, सुखपूर्वक गृह- वास; पुण्ययोग से दुःख का, था न जरा अवकाश ।
शरद काल का समय अनूठा, कार्तिक
मास
श्रेष्ठ कौमुदी उत्सव प्यारा, पूनम के दिन
भारत में यह उत्सव भी अति, मंगलकारी होता
युवक - वृन्द इक नई लहर में,
सूर्योदय से सूर्योदय तक,
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सुहाया है
शान्त स्वच्छ शीतल रजनी में,
उस दिन खाता गोता था ॥
उपवन में ही रहते
राजाज्ञा थी, कोई भी नर,
नहीं
नगर में
!
आया है ॥
थे ।
नृत्य गान सब करते थे ॥
४८
सर्ग छह
रह
था ।
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सकता ।
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