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धर्म-वीर सुदर्शन सभी भाँति सहयोग करूँगा,
गलती यह सब धो दूंगा ॥" रंभा राजी हुई मनोरथ,
पूर्ण हुआ सब काम बना । द्वारपाल प्रतिरोधी था,
____वह अनुरोधी अभिराम बना ॥ चालाकी से इसी भाँति,
सातों दरवाजे खोल लिए । द्वारपाल सातों ही अपने,
भावों के अनुकूल किए ॥ मस्तक पै रख मूर्ति मजे से,
प्रतिदिन आती जाती है । देखा-परखा बार-बार,
पर कहीं न अड़चन पाती है ॥
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