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अभया का कुचक्र
मैं भी देखूगा तू कैसे,
मुझे नहीं दिखलाएगी ? राजाज्ञा कर भंग,
महल के अन्दर कैसे जाएगी ?" रंभा ने यह द्वारपाल का,
वचन सुना तो क्रुद्ध हुई । पटकी झट ऊपर से मूरत, ..
खंड - खंड हो भग्न हुई । बोली कृत्रिम क्रोध बता कर,
"इसका मजा चखाऊँगी । जाती हूँ रानी से कह कर,
फाँसी पर लटकाऊँगी ॥ पूजा-जैसी मंगल कृति में,
व्यर्थ भयंकर विघ्न किया । रानी जी के इष्ट देव का,
तूने अति अपमान किया ॥" द्वारपाल घबराया दिल में,
गर्व - मेरु चकचूर हुआ । हाथ जोड़ कर लगा मनाने,
'जी-जी' का मजदूर हुआ ॥ “गलती मुझसे विकट हुई,
पर क्षमा कीजिए करुणा ला । रानी से बिल्कुल मत कहना,
मूर्ति दूसरी देना ला ॥ आगे तू कुछ भी ले जाना,
___ मैं न कभी भी रोकूगा ।
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