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धर्म-वीर सुदर्शन चम-चम करता रंभा की,
गर्दन में खुश हो डाला है।
देखो, कैसा अजब ढंग है,
स्वार्थी दुनियादारी का । पूर्ण अटल है राज्य सर्वतः,
___ बदकारी मक्कारी का ॥ झूठे मौज करें मन चाही,
सच्चों का मुँह काला है । धोखेबाजों ने भोली,
जनता पर फंदा डाला है ॥ सत्य कहें तो मारन धावें,
झूठे जग पतियाते हैं । कपट-कृपा से माल मुफ्त का,
अनायास हथियाते
कौन सुनता है किसी की सत्य बातें आजकल;
सत्य-भक्तों की निकाली जातीं आतें आजकल । प्रेम से हित से सुनाएँ यदि कहीं हित के वचन;
सहस्र-वृश्चिक-दंश की ज्यों तिलमिलाते आजकल । गैर तो क्या मित्र होंगे, सत्य की शिक्षा दिये;
प्राण-प्यारे भी कुटिल आँखें दिखाते आजकल । 'हाँ' में 'हाँ' रहिए मिलाते बनिए पक्के जी हजूर;
'हाँ जी' के पुतले ही गुलछरें उड़ाते आजकल । झूठ तेरा राज्य है, चहूँ ओर तेरी पूछ है;
झुठ के बल शंठ भी जग-मान पाते आजकल ।
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