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________________ धर्म-वीर सुदर्शन चम-चम करता रंभा की, गर्दन में खुश हो डाला है। देखो, कैसा अजब ढंग है, स्वार्थी दुनियादारी का । पूर्ण अटल है राज्य सर्वतः, ___ बदकारी मक्कारी का ॥ झूठे मौज करें मन चाही, सच्चों का मुँह काला है । धोखेबाजों ने भोली, जनता पर फंदा डाला है ॥ सत्य कहें तो मारन धावें, झूठे जग पतियाते हैं । कपट-कृपा से माल मुफ्त का, अनायास हथियाते कौन सुनता है किसी की सत्य बातें आजकल; सत्य-भक्तों की निकाली जातीं आतें आजकल । प्रेम से हित से सुनाएँ यदि कहीं हित के वचन; सहस्र-वृश्चिक-दंश की ज्यों तिलमिलाते आजकल । गैर तो क्या मित्र होंगे, सत्य की शिक्षा दिये; प्राण-प्यारे भी कुटिल आँखें दिखाते आजकल । 'हाँ' में 'हाँ' रहिए मिलाते बनिए पक्के जी हजूर; 'हाँ जी' के पुतले ही गुलछरें उड़ाते आजकल । झूठ तेरा राज्य है, चहूँ ओर तेरी पूछ है; झुठ के बल शंठ भी जग-मान पाते आजकल । ४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001218
Book TitleDharmavir Sudarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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