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अभया का कुचक्र
कार्य आपका सफल करूँगी,
ऐसा मन्त्र चलाऊँगी । सेठ सुदर्शन को श्री चरणों
पर शीघ्र झुकाऊँगी ॥ झेलूँगी सब कष्ट, प्राण,
- अपनों की भेंट चढ़ा दूंगी । 'रंभा तुझे धन्य है' इक दिन,
श्री - मुख से कहला लूंगी ॥" रंभा के मधुवचन सुने तो,.
अभया का मुख कमल खिला । हर्षमत्त हो नाच उठी,
काफूर हुआ सब रंज - गिला ॥ "रंभा ! तू सचमुच रंभा है,
जो चाहे कर सकती है । आज विश्व में तू ही मेरा,
___ अखिल दुःख हर सकती है ॥ तू ने ही सब उलझन मेरी,
आज तलक . सुलझाई हैं । मन में जो कुछ उठीं कामना,
झटपट सफल बनाईं हैं ॥ आशा क्या, निश्चय है, यह भी,
__कार्य सिद्ध तुझसे होगा । अब-के भी यश-मुकुट विजय का,
तेरे ही सिर पर होगा ॥" कहते-कहते शीघ्र कंठ से,
मुक्ता - हार निकाला है ।
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