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धर्म-वीर सुदर्शन
कानों से सुन कर के अभया, नहीं जीभ
पर
जो स्नेही की गुप्त बात को, गुड्डा बाँध वे जाहिल, मक्कार नरक में, लाखों धक्के
रानी के प्रण से कपिला के,
अन्तर में चिर रुद्ध पाप का, स्रोत उमड़ भुख साफ-साफ अथ से इति यावत, पाप कहानी पापिन ने इक और पाप की, नींव
महा
कथा - पूर्ति में कपिला ने जब, हिजड़ेपन का रानी ने तब करतल ध्वनि के,
मन में साहस भर आया ।
“ भूल गई सारी चतुराई,
वैश्य - पुत्र के सम्मुख,
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उड़ाते
हैं ।
खाते हैं ॥
सेठ साफ बच गया चाल से,
भीषण
लाएगी ॥
न्यास किया ।
साथ विकट उपहास किया |
ज्ञात हुआ वह बनिया भी है,
चतुर
पर आया ।
कह
कपिला ! तू तो भूल
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ब्राह्मण जाति हेकड़ी भूल
डाली ।
डाली ॥
धूल झोंक दी आँखों में ।
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गई ।
गई ॥
एक ही लाखों में ॥
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