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संकट का बीजारोपण कैसे अन्दर का भेद बताऊँ सखी !
लज्जा आती है कैसे सुनाऊँ सखी ! क्या कहूँ, क्या ना कहूँ, दिल में बड़ा संकोच है, व्यर्थ के झगड़े में पड़ जाने का अति ही सोच है;
कैसे लज्जा का पर्दा हटाऊँ सखी! . प्रेम कहता है, हृदय के भाव सारे खोल दूँ, बुद्धि कहती, जुल्म हो जाएगा गर सच बोल हूँ,
कैसे अपयश का दाग लगाऊँ सखी! खास घटना मेरे जीवन में बनी है, क्या कहूँ, क्या करेंगी पूछ कर, बस आज तो माफी चहूँ,
मैं ना चाहूँ कि बात बढ़ाऊँ सखी!
रानी बोली प्रेमाग्रह से,
“कपिला ! क्यों घबराती है ? आगे कदम बढ़ा कर अब,
फिर पीछे क्यों खिसकाती है ?
बातों ही बातों में आधा,
गुप्त तत्त्व तो व्यक्त हुआ । क्यों न साफ कहती निज मुख से, .
शेष घटित जो वृत्त हुआ ।
है ।
लेश मात्र भी अब तक मैंने,
तुझसे भेद न रक्खा दो देहों में एक प्राण का,
स्वर झंकृत कर रक्खा
है
॥
जो तू बात कहेगी मुझसे,
कभी न बाहर
जाएगी ।
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