________________
-
संकट का बीजारोपण बड़े प्रेम से प्रीति-भोज,
सब मित्र परस्पर करते हैं। वन उपवन में यत्र-तत्र,
. सानन्द घूमते फिरते हैं ।। सेठ सुदर्शन की पत्नी भी,
चली वसंत मनाने को । स्वर्गाङ्गण-सी वन-स्थली में, . .
यात्रानन्द उठाने को ॥ वस्त्राभूषण से सज्जित हो, . .
स्वर्णयान में बैठी यों । मधुऋतु-दर्शन-हेतु अप्सरा,
स्वर्ग - लोक से उतरी ज्यों ॥ आस-पास में सखी-वृन्द,
संगीत वसंती गाता था । मातृ-गोद में पुत्र-युगल भी,
शोभा अभिनव पाता था ।
आया रथ चलता हुआ, राजमहल के पास, रानी अभया गोख में, बैठी थी सविलास । आस-पास में था जुड़ा, सखियों का परिवार, बैठी थी कपिला वहीं, कपिल-पुरोहित नार । देखी सती मनोरमा, देखे सुत सुकुमार, रानी अति विस्मित हुई, चौंकी चित्त मँझार ।
"देवी है, सच-मुच यह तो,
रूप गवाही
देता
है।
- २६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org