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सर्ग चार
संकट का बीजारोपण
प्रकृति-क्षेत्र में अवतरित हुआ सुरम्य वसंत; किन्तु सुदर्शन के लिए लाया उग्र उदंत ।।
रंग-मंच पर प्रकृति नटी के,
परिवर्तन नित होते हैं । अच्छे और बुरे नानाविध,
दृश्य दृष्टिगत होते हैं ॥ पतन और उत्थान यथाक्रम,
आते जाते रहते क्षण-भंगुर संसृति का, .
रेखा-चित्र खींचते रहते हैं । जीवन में सुख-दुःखादिक का,
चक्र निरन्तर फिरता है । मानव-पद के गुण-गौरव का,
सफल परीक्षण करता है ।। संकट की घन-घटा सेठ पर,
भी अब छाने वाली है। धैर्य, धर्म की अग्नि परीक्षा,
उत्कट होने वाली है ।
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