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अन्धकार के पार
"कृपा करें, न किसी से कहना,
बात जोकि मैंने खोली ॥" कहा सेठ ने “मेरी भी यह, - गुप्त बात नहीं कहना । दोनों की बातों का अच्छा, .. ... दोनों तक . सीमित रहना ॥" सेठ और कपिला दोनों ने,
वचन-बद्धता की स्वीकार । दासी ने भी खोला झट-पट,
दरवाजा आज्ञा अनुसार ॥ द्वार खुला तो सेठ सुदर्शन,
शीघ्र निकल बाहर आए । सहा घोर अपमान किन्तु,
निज - धर्म बचाकर हर्षाए । घर आते ही किया महाप्रण,
निज मन में धर भव्य विराग । 'महिलाऽऽमंत्रण से पर-घर पर,
___ एकाकी जाने का त्याग ॥" शान्तिपूर्ण गृह-स्वर्ग लोक में,
ठने न कटुता का व्यवहार । कहा सेठ ने नहीं मित्र से,
कपिला का कुछ भी कुविचार ॥ सागर-सम गंभीर,
सजनों का होता है अन्तस्तल । पी जाते हैं विष भी मधु-सम,
चित्त नहीं करते चंचल ।।
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