________________
अन्धकार के पार
-
-
-
बड़ी वेदना है, मछली के तुल्य,
- तड़फते रहते जब भी आता होश क्षणिक,
तब 'मित्र सुदर्शन' कहते हैं ॥ मित्र वेदना सुनते-सुनते, .
.. आँख .. सेठ की भर आईं । सोचा-प्रभो ! अचानक यह,
क्या संकट की घटना आई ॥ प्रजाकार्य प्रारंभ अभी तक,
नहीं सफल समतोल हुआ । मध्य-धार में सहयोगी का,
जीवन डाँवा - डोल हुआ । धोखा देकर मुझे अचानक,
मित्र ! छोड़ क्या जाएगा ? तुझ-सा स्नेही अन्य कहाँ से,
मेरा मानस पाएगा ?"
गए सुदर्शन दौड़ कर कपिल-गेह तत्काल उन्हें पता क्या था वहाँ, बिछा हुआ है जाल । मित्र ! मित्र !! कहते घुसे, ज्यों ही शयनागार; त्यों ही दासी ने जड़ा, ताला झट से द्वार ।
कामयंत्रणा-विकल कामिनी, ..
सुख-शय्या पर पौढ़ी थी । पूर्णतया सब ओर दबाकर, . लम्बी चादर ओढ़ी थी ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org