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स्वदेश-प्रेम
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सांकेतिक मधु भाषा में तो,
__बहुत बार है समझाया ! कटु औषधि के बिना पूर्ण फल,
किन्तु कहाँ किसने पाया ? अधिकारी होने के नाते,
__ नहीं अधिक कुछ कह सकता। 'धक्के खाऊँ, फाँसी पाऊँ',
यह आतंक न सह सकता ।। आप नगर के उप-राजा हैं,
राजा को जाकर समझाएँ । संभव है, यदि आप कहेंगे,
तो कुछ पथ पर आजाएँ ॥ जैसा भी कुछ हूँ कि तुम्हारे,
स्वर में मैं भी बोलूँगा । कड़वी-मीठी कह सुनकर,
राजा के श्रुतिपट खोलूँगा ॥"
युगल मित्र मिलकर चले, राजा के दरबार; राजा ने भी प्रेम से, किया उचित सत्कार । हाथ जोड़ कर सेठ ने, रक्खा निज प्रस्ताव; खोल खोल कर स्पष्टतः, समझाया सब भाव ।
देव ! आजकल पता नहीं कुछ,
किस विचार में बहते हो ? राज्य-कार्य सब छोड़ अलग-सी,
किस दुनियाँ में रहते हो ?
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