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धर्म-वीर सुदर्शन कहा सेठ ने- कपिल ! तुम्हें कुछ,
अपने पुर का भी है ध्यान । अत्याचार-ग्रस्त पुर-वासी,
निर्बल जनता का कुछ भान ॥
नैतिक वातावरण नगर का,
दूषित होता जाता है । भ्रष्टाचारी युवक - वर्ग,
पतनोन्मुख होता जाता है ।
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द्यूत, मद्य और वेश्याओं के,
आलय सब आबाद हुए । हंत ! खेद है धर्माचारी,
गृह - वासी बर्बाद हुए ॥ दीन प्रजा के नौनिहाल,
शिक्षा दीक्षा कब पाते हैं ? मूढ़ अशिक्षित रहने से,
फँस दुराचार में जाते हैं । प्रजा-पतन का मूल हेतु,
___ राजा का व्यसनी होना है । राज-धर्म से च्युत होकर,
विषयासव पीकर सोना है ॥
न्याय भवन में न्याय कहाँ,
अब दौर मद्य के चलते हैं ।। द्यूत खेलने में निश दिन,
सोने के पासे ढलते हैं ॥
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