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धर्म-वीर सुदर्शन
भाग्य योग से गृह-पत्नी भी,
थी 'मनोरमा' शीलवती । प्राणनाथ पति की छाया,
की भाँति निरन्तर अनुवर्ती ॥ दासी दास कुटुम्ब सभी,
नित रहते थे आज्ञाकारी । बोला करती थी अति ही
मृदु वाणी, सब जन-प्रियकारी ॥ देश, धर्म, जन-सेवा में नित,
पति का हाथ बँटाती थी । क्लेश, द्वेष, मात्सर्य, रूढ़ि के,
निकट नहीं क्षण जाती थी । गृह-कार्यों में चतुर सुविदुषी,
देश काल का रखती ज्ञान । पर-पुरुषों को अन्तर-मति में,
पिता बन्धु-सम देती मान ।।
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