________________
कवि जी का व्यक्तित्व
हैं, विचारक हैं, लेखक हैं, कवि हैं, प्रवचनकार हैं, समालोचक हैं और साहित्यकार हैं । शब्दों की रचना उन्होंने की है, और साथ ही समाज की रचना भी । कवि जी का व्यक्तित्व इन्द्रधनुष की तरह बहुरंगी रहा है, तभी तो उसमें से विचारों की वह अद्भुत चमक और भावनाओं की दिव्य दमक प्रकट हो सकी है, जिससे समस्त समाज चमत्कृत हो गया है । समाज सुधारक :
कवि श्री जी क्या हैं ? ज्ञान और कृति के सुन्दर समन्वय । विचार में आचार, और आचार में विचार । उन्होंने निर्मल एवं अगाध ज्ञान पाया, पर उसका अहंकार नहीं किया । उन्होंने महान् त्याग किया, पर त्याग करने का मोह उनके मन में नहीं था । उन्होंने तप किया, किन्तु उसका प्रचार नहीं किया । उन्होंने वैराग्य की उत्कट साधना की है, पर उसका प्रचार नहीं किया । अपने इन्हीं सद्गुणों के कारण आप श्रमण संस्कृति के व्याख्याकार, उद्गाता, सजग प्रहरी और सतेज नेता हैं । उनका सम्पूर्ण जीवन संघ-हित, संघ-विकास और संघ-शुद्धि के लिए ही है । वे संघ-हित के लिए और समाज के एकीकरण के लिए वे अपने स्वास्थ्य की भी चिंता नहीं करते ।
उपाध्याय अमर मुनि जी हमारे समाज के उन महापुरुषों में से एक हैं, जिन्होंने समाज के भविष्य को वर्तमान में ही अपनी भविष्यवाणी से साकार किया है । उन्होंने अपने जीवन की साधना से अतीत के अनुभवों का, वर्तमान के परिवर्तनों का और भविष्य की सुनहरी आशाओं का साक्षात्कार किया है ।
धर्म, दर्शन और संस्कृति की उन्होंने युगानुकूल व्याखया की है । उन्होंने कहा है, कि जो गल-सड़ गया हो, उसे फेंक दो और जो अच्छा है उसकी रक्षा करो । उनकी इस बात को सुनकर कुछ लोग धर्म के खतरे का नारा लगाते हैं । इसका अर्थ केवल इतना ही हो सकता है, कि उन लोगों का स्वार्थ खतरे में है, किन्तु धर्म तो स्वयं खतरों को दूर करने वाला अमर-तत्व है ।
व्यक्तित्व का विचार पक्ष :
कविजी के व्यक्तित्व का विचार-पक्ष बहुत ही शानदार है । वे हिमालय से ऊँचे हैं और सागर से भी गम्भीर । वे विचारों के ज्वालामुखी हैं, परन्तु हिम से भी अधिक शीतल । उनके विचारों में क्षणिक उत्तेजना नहीं, चिरस्थायी विवेक और गम्भीरता ही रहती है । जब किसी भी स्थिति पर वे विचार करते हैं, तब वस्तु के अन्तस्तल तक उनकी प्रतिभा सहज रूप में पहुँच जाती है । आज तक उनकी प्रतिभा और मेधा ने कभी उनके जीवन के साथ छलना नहीं की । सम्मुखस्थ व्यक्ति का तर्क जितना पैना होता है, कवि जी की बुद्धि उतनी ही प्रखर हो जाती
-
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org