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कवि जी का व्यक्तित्व
मनुज की जगती पर मनुज के जीवन के सत्य संकल्पों को साकार करने में जिसने अपनी समग्र शक्ति का आधान किया तथा जीवन की संध्या के चरम क्षणों तक करते रहने का जिसने सत्य व्रत स्वीकार किया है, उस अमर की-अमरत्व की 'अभय-ज्योति' को प्रकाशमय मस्तिष्क में, आलोकमयी वाणी से और ज्योतिर्मय जीवन से, जन-जन के जीवन के जीवन-देवता के चरण कमलों में कोटि-कोटि वन्दना के साथ अभिनन्दन करता है ।
समाज ने जिसको संस्कृति का संस्कार करने के कारण संस्कारक माना । धर्म ने जिसमें स्व और पर को धारण करने की शक्ति देखकर धार्मिक कहने में अपना स्वयं का गौरव स्वीकार किया । दर्शन ने, जिसमें साक्षात्कार करने का संकल्प पाकर दार्शनिक. होने की सहज शक्ति को पाया । काव्य ने, जिसमें कल्पना, प्रतिभा और निसर्ग भावुकता देखकर कवि पद से विभूषित किया । जो कुछ पाना है, अन्दर में अन्दर से ही पाना है, पाना भी क्या है, जो कुछ अन्तर् में सत्यं, शिवं, सुन्दरं युग-युग से है, उसी को प्रकट करना है । कविजी की यही संस्कृति है, यही धर्म है, यही दर्शन है और यहीं कवि का काव्य है । संस्कृति, धर्म, दर्शन और कवि कर्म-कविजी इन चार युगों के एक साथ युगावतार हैं-युगान्तरकारी हैं । युग-निर्माता :
उपाध्याय अमर मुनि जी के तेजस्वी व्यक्तित्व ने स्थानकवासी समाज में नव-युग का निर्माण किया है । उन्होंने समाज को नया विचार, नया कर्म और नयी वाणी दी है । जीवन एवं जगत् के प्रति सोचने और समझने का नया दृष्टिकोण दिया है । वस्तु-तत्व को परखने का समन्वयात्मक एक नया दृष्टि-बिन्दु दिया है । जिस युग में साधु-समाज और श्रावक-वर्ग पुराने थोकड़ों और सूत्रों के टब्बे से आगे नहीं बढ़ पा रहा था, कवि जी ने उस युग में समाज में प्रखर पाण्डित्य और प्रामाणिक साहित्य की प्राण-प्रतिष्ठा करके नये मानव के लिए नये युग का द्वार खोला । उपाध्याय जी ने नयी भाषा, नयी शैली और नयी अभिव्यक्ति से समाज को नया चिन्तन और नूतन-मनन करने की पावन प्रेरणा दी । अपने पुरातन सांस्कृतिक भण्डार से कवि जी ने अपनी प्रतिभा की शान पर चढ़ाकर, चमकाकर, विचार-रत्न जन-चेतना को प्रस्तुत किए । अपने युग के प्रत्येक विचार को कवि जी ने अपनी बुद्धि की तुला पर तोला । इसी आधार पर उपाध्याय अमर मुनि जी अपने युग के निर्माता हैं और युग-द्रष्टा भी हैं । वे स्थानकवासी समाज के सन्त हैं, साधक
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