________________
कवि और कृतित्व
प्रस्तुत संकलन में उपाध्याय श्री ने इसी व्यापक एवं उदार समन्वयात्मक-दृष्टि को सामने रखा है । अतः जीवन-विकास के लिए प्रस्तुत ग्रन्थ, जो डबल डिमाई साइज में लगभग ८०० पृष्ठों का है, अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है ।
महामहोपाध्याय पद्मभूषण गोपीनाथ कविराज, आगमों के सुप्रसिद्ध विद्वान पं. बेचरदास जी दोशी, स्व. राष्ट्रपति जाकिर हुसेन, आचार्य श्री तुलसी, युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ आदि विद्वानों द्वारा प्रशंसित है । जीवन साधना के सुन्दर सूत्र हर पेज पर मोतियों की भाँति बिखरे पड़े हैं ।
अभी भी गुरुदेव की साहित्य-साधना की धारा अनवरत गतिशील है । अनेक ग्रन्थ प्रकाशन की प्रतीक्षा में हैं । श्रुतदेवता, प्रज्ञामूर्ति, महान् साहित्य-स्रष्टा के चरणों में शत-सहस्र अभिवन्दन-अभिनन्दन । चिरं जीव, चिरं जय ।
“किस विधि से पूजा हो तेरी,
कौन अर्घ्य से तव पद पूजे ।" तुम्हारे इस अनोखे सर्व-पूज्य एवं सर्व-स्तुत्य दिव्य-चित्र का अंकन मेरी सामान्य तूलिका न कर पायेगी । क्या अच्छा होगा-जगत्-कल्याण के हेतु सहज विस्फुरित आपकी दिव्य वाणी में हम सब आपके दर्शन करें, शब्दातीत को शब्दों में पाने का, स्पष्टता को सृजन में खोजने का यह एक नम्र प्रयास ही पूजा है । आपकी ही वस्तु आपके ही कर-कमलों में अर्पित है
त्वदीयं वस्तु गुरुवर, तुभ्यमेव समर्पितम्
यही है, मेरी पूजा, यही है, मेरा भाव-संगीत । गुरु-देव, आप जैसे ज्ञान-देवता की अर्चना के हेतु, सुन्दर-पूजा का उपकरण और कौन-सा हो सकता है ।
मेरी पूजा का प्रकाश, मेरा भाव-संगीत, मेरी स्वर-ध्वनि, जन-जन के मन-मन तक पहुँच कर, मनुष्य के अवचेतन को चेतन में परिणत कर सके, तदर्थ है, मेरा यह प्रयास ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org