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धर्म-वीर सुदर्शन
किस प्रकार शुद्ध करके पुनः गति शील किया जाय । उत्सर्ग में साधक कैसे आचार का पालन करे और अपवाद में जीवन को किस प्रकार विवेक एवं प्रामाणिकता के साथ गतिशील रखे, जिससे संयम एवं आध्यात्मिक साधना का सम्यक् - रूप से परिपालन कर सके । इसका विस्तृत विवेचन के साथ दार्शनिक, तात्विक, सैद्धान्तिक, विषयों का तथा उस युग की सामाजिक, राजनैतिक एवं पारिवारिक स्थिति का और उस युग के रहन-सहन का सुन्दर विवेचन प्रस्तुत इस महाग्रन्थ में है । यह चूर्णि अपने आप में विशेष ग्रन्थ है ।
निशीथ भाष्य के सम्पादन एवं प्रकाशन का साहस करके आपने ज्ञान के क्षेत्र में रही हुई एक बहुत बड़ी कमी को पूरा किया है प्रस्तुत ग्रन्थराज एक महत्त्वपूर्ण कृति है, वस्तुतः यह ज्ञान - विज्ञान का बृहत्कोश है
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इस महाग्रन्थ का द्वितीय संस्करण छप चुका है ।
सूक्ति त्रिवेणी
नाम के अनुरूप प्रस्तुत ग्रन्थ में भारतीय संस्कृति एवं धर्म-दर्शन की त्रिवेणी —जैन, बौद्ध एवं वैदिक धारा, जो यथार्थ में अखण्ड - अविच्छिन्न रूप से प्रवहमान है, उसके विशाल रूप के दर्शन प्राचीन ग्रन्थों में उपलब्ध है । प्रस्तुत ग्रन्थ में उसके मौलिक - दर्शन एवं जीवन - स्पर्शी सार-भूत उदात्त वचनों को संकलित किया गया है, जो सामान्यजनों के लिए उपयोगी है ।
उपाध्याय श्री जी का चिन्तन देश, काल, सम्प्रदाय एवं पुरातन परम्पराओं की सीमा में आबद्ध नहीं है । वे सत्य के अनुसन्धित्सु हैं । इसलिए साम्प्रदायिक बाड़े-बन्दी से मुक्त होकर सत्य का साक्षात्कार किया है । उनकी दिव्य-दृष्टि एवं उनका समदर्शीत्व-भाव प्रस्तुत ग्रन्थ में परिलक्षित होता है, विशाल दृष्टिकोण भी ।
भारतीय तत्व - चिन्तन एवं जीवन-दर्शन की अनन्त ज्ञान - ज्योति इन छोटे-छोटे सुभाषिता में इस प्रकार सन्निहित है, जैसे छोटे-छोटे सुमनों में उपवन का सौरभमय वैभव छिपा रहता है । उसे जन-जीवन को आलोकित करने के लिए उपाध्याय श्री ने प्रस्तुत ग्रन्थ श्रम एवं निष्ठा के साथ संकलित किया है ।
तीनों धाराओं के चिन्तन में कुछ भिन्नता भी है । लेकिन इतना तो दृढ़ आस्था से कहा जा सकता है, कि तीनों धाराओं की जीवन-दृष्टि मूलतः एक है और नैतिक एवं आध्यात्मिक अभ्युदय के उच्च आदर्शों को लिए हुए है । चिन्तन का विभाजन - जो कहीं-कहीं परिलक्षित होता है, वह भी एकान्त नहीं है । यदि व्यापक दृष्टि से देखें, तो एक अखण्ड जीवन-दृष्टि एवं चिन्तन की एकरूपता भी परिलक्षित होती है । भावात्मक एकता के साथ शब्दात्मक एकता के दर्शन करना चाहें, तो अनेक स्थल ऐसे हैं, जो अक्षरशः समान एवं सन्निकट हैं । यह तीनों संस्कृतियों का सुन्दर संगम स्थल है
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