________________
%3
(४७)
धर्म-वीर सुदर्शन सुख की मस्ती में तो किसको,
कहो धर्म का रंग न हो? मानव को तो यत्न मात्र का,
स्वत्व मिला है जीवन में । फल मिलना अधिकार परे की
बात भाग्य के बंधन में ॥
(४८)
धन दौलत पाकर भी सेवा
अगर किसी की कर न सका। दया भाव ला दुःखित दिल के
जख्मों को जो भर न सका ॥ (४६) वह नर अपने जीवन में,
सुख-शान्ति कहाँ से पाएगा। ठुकराता है, जो औरों को,
स्वयं ठोकरें खाएगा ॥ (५०) जहाँ अग्नि पर रखा दुग्ध
उत्तप्त अतीव उबलता हो। जल के छींटों से कब तक के
लिए शान्ति शीतलता हो ? (५१) जो नर अपने मुख से वाणी
बोल पुनः हट जाते हैं। नर तन पाकर पशु से भी वे
जीवन नीच बिताते हैं। (५२) मर्द कहा वे जो निज मुख से
___ कहते थे सो करते थे ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org