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कवि और कृतित्व
उपाध्याय अमर मुनि जी एक सन्त हैं, कवि हैं, विचारक हैं, महान् दार्शनिक हैं, साहित्यकार हैं, लेखक हैं और युग-दृष्टा एवं युग-पुरुष हैं । वे मानवता के सन्देश-वाहक हैं, जीवन के कलाकार हैं, उनके विचार, उनका चिन्तन, उनका लेखन एवं उनकी वाग्धारा कभी एक दिशा-विशेष में प्रवहमान नहीं रही, उसका प्रवाह सभी दिशाओं में गति-शील रहा है । वे जीवन की सभी दिशा-विदिशाओं को आलोकित करते रहे हैं । वस्तुतः कवि श्री जी सम्पूर्ण काल एवं सत्य के दृष्टा हैं । उनका साहित्य किसी काल, पन्थ, देश एवं जाति विशेष के बन्धन से आबद्ध नहीं है । उनका साहित्य, उनकी कठोर श्रुत-साधना एवं दीर्घ तपः-साधना का सुमधुर फल है । उनका आलेखन किसी साम्प्रदायिक क्षुद्र परिधि में घिरे रहकर नहीं, प्रत्युत समस्त मानव जाति के अभ्युदय को, विश्व-बन्धुत्व एवं विश्व-शान्ति की उदात्त भावना को सामने रखकर हुआ है । ____ कविश्री जी अपने आप में परिपूर्ण हैं । अपने विचारों के वे स्वयं निर्माता हैं । वे किसी शक्ति के द्वारा अपने मन-मस्तिष्क पर नियन्त्रण करने के पक्ष में नहीं हैं । उनका विश्वास है कि सहज भाव से उद्भूत चिन्तन को जबरदस्ती रोकने का प्रयत्न करना महान् अपराध है । अतएव कविश्री जी का चिन्तन इन समस्त साम्प्रदायिक अँधेरी काल कोठरियों से मुक्त एवं उन्मुक्त है ।
वस्तुतः साहित्य ही व्यक्ति के जीवन का साकार रूप है । साहित्य व्यक्ति के व्यक्तित्व की प्रतिच्छाया है । साहित्य केवल जड़ शब्दों एवं अक्षरों का समूह मात्र ही नहीं है, उसमें व्यक्ति का व्यक्तित्व बोलता है, व्यक्ति का जीवन बोलता है । अस्तु, कविश्री जी का साहित्य ही उनका यथार्थ परिचय है । साहित्यकार सत्य का द्रष्टा होता है ।
साहित्य साधना के उषा-काल में, धर्म, समाज एवं राष्ट्र की डाली पर चहचहाने वाला कवि-हृदय केवल काव्य तक ही सीमित नहीं रहा । उनका विराट् चिन्तन साहित्य की समस्त दिशाओं को आलोकित करने लगा । उनकी लेखनी उनके गम्भीर चिन्तन एवं उदात्त विचारों का संस्पर्श पाकर दर्शन, आगम, काव्य, निबन्ध, संस्मरण, यात्रा-वर्णन, खण्ड-काव्य, कहानी एवं समालोचना आदि साहित्य-उपवन को पल्लवित, पुष्पित एवं फलित करने लगी । साहित्य की कोई भी विधा आपके चिन्तन एवं लेखनी के स्पर्श से अछूती नहीं रही । आपके भाव, विचार, भाषा-शैली एवं
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