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________________ धर्म-वीर सुदर्शन राजन् ! बताएँ कैसा गुणवान है सुदर्शन; धर्मज्ञ सज्जनों का अभिमान है सुदर्शन ! सौ कौस दूर रहता, जग की बुराइयों से, जग में पतित्रता का उपमान है सुदर्शन ! दृढ़ सत्य का पुजारी, छल छन्द है न कुछ भी; सादर सदाचरण पर बलिदान है सुदर्शन ! पूछो नगर-नगर में सब ठौर इस की बाबत; ___ शीलव्रती जगत में असमान है सुदर्शन ! मर्मज्ञ शास्त्र का है, विद्वान है, चतुर है; __सद्ज्ञान बाँसुरी की मृदु तान है सुदर्शन ! दीनों का है सहारा, प्यारा है दुःखितों का; पीड़ित अनाथ जन का प्रिय प्रान है सुदर्शन ! चंपा की शान है और चंपा की है जरूरत, भूपेन्द्र ! आप का भी सम्मान है सुदर्शन ! स्वर्गीय देवता है, भगवान है हमारा; नजरों में आपकी जो शैतान है सुदर्शन ! झेलेंगे अब कहाँ तक अन्याय इस कदर हम; गूंगी प्रजा की सब कुछ जी-जान है सुदर्शन ! राजा बोला "बदमाशो ! बस, और न अब बकवास करो । क्यों मेरे हाथों से अपना, नाहक सत्यानाश करो ॥ कामी लंपट को तो करके, स्तुति आकाश चढ़ाते हो । और मुझे तुम बातों-ही-बातों, ___ में अधम बताते हो ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001218
Book TitleDharmavir Sudarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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