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पौरजनों का प्रेम मूर्ख तुम्हीं लोगों ने इसका,
साहस अधिक बढ़ाया है। राजमहल में भी जा पहुँचा,
जरा नहीं सकुचाया है। छोङ्गा हर्गिज न दुष्ट को,
' शूली पर लटकाऊँगा । अगर शरारत की तो तुमको भी,
वही राह दिखलाऊँगा ॥" प्राणों के भय से पुरवासी,
वृन्द विवश चुपचाप हुआ । सूझा कुछ भी नहीं अन्य पथ,
किन्तु घोर परिताप हुआ ॥
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