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शूली के पथ पर
अगर सेठ ने इस घटना में,
जरा नहीं झकमारी है । तो फिर क्या रानी जी की,
ही यह सारी मक्कारी है ॥
राम ! राम !! श्री रानीजी को,
___इस प्रकार लांछित करना । भरी सभा में बोल रहा है,
राजा का कुछ भी डर ना ॥"
जी
मंत्री मतिसागर बोला “क्यों,
नाहक शोर मचाते हो । व्यर्थ खुशामद कर राजा को,
पतन - मार्ग ले जाते हो ॥" "राजा जी ! इन खुदगों की,
आप न बातों में आएँ । ले डूबेंगे अगर हाथ की,
गुड्डी इन की बन जाएँ । मेरा कुछ भी स्वार्थ नहीं है,
सच्ची बातें कहता हूँ । रात्रि-दिवस इस राजमुकट,
के हित में चिन्तित रहता हूँ ॥"
मुझे क्या, तुम्हें दुःख उठाना पड़ेगा;
अखिल गर्व गौरव गँवाना पड़ेगा। चढ़ा है नशा, राज सत्ता का अब तो;
किसी दिन कुमति पर लजाना पड़ेगा।
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