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धर्म - वीर सुदर्शन
विजय न्याय की अन्त हो के रहेगी;
अनय को निजानन छिपाना पड़ेगा ।
खुशामद -
इ-परस्तों की बातों में आकर; अधम धार बेड़ा डुबाना पड़ेगा । चढ़ाते जिसे आज शूली उसी के;
चरण में यह मस्तक झुकाना पड़ेगा ।
सताना न अच्छा, कभी बेगुनाह का ;
समय आए आँसू बहाना पड़ेगा । बुरा या भला दिल में आए जो मानें;
सचाई का रुख तो दिखाना पड़ेगा ।
राजा दधिवाहन, बस इतना, सुनते ही यम-रूप छाया भय सब ओर सभा का, रूप समग्र विरूप " ओ चांडाल ! नीच !! दुर्भागी !!! तू किस पर बक-बक करता ही जाता है,
निज पद
वीर सैनिको ! इसको भी निज,
अन्धकार-मय कारागृह में,
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आज्ञा पाते ही मंत्री को, सैनिक
दल
करनी का फल दिखला दो ।
हुआ ।
हुआ |
गरबाया है ।
भान भुलाया है ॥
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डालो, बेड़ी जड़वा दो ॥"
ने पकड़ लिया ।
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