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अमनस्के क्षणात्क्षीणं कामक्रोधादिबन्धनम्।
नश्यतिकरणस्तम्भं देहगेहं स्लथं भवेत्।। अमनस्क भाव का उदय होने पर क्षण-भर में काम-क्रोधादि बन्धन क्षीण हो जाते हैं, इन्द्रिय-स्तम्भ (इन्द्रिय समूह) नष्ट हो जाते हैं, देह रूपी घर शिथिल हो जाता है।
अमनस्कखनित्रेण समूलोन्मूलने कृते।
अन्तःकरणशल्ये तु सुखी संजायते मुनिः॥ अमनस्क रूपी कुदारी से अन्तःकरण (मन) रूपी शल्य (काँटे) के समूल (जड़ सहित) उन्मूलित होने पर मुनि (योगी) सुखी हो जाता है।
चित्ते चलति संसारोऽचले मोक्षः प्रजायते।
तस्माच्चितं स्थिरीकुर्यादौ दासीन्यपरायणः॥ चित्त के चंचल होने पर संसार का भान होता है और निश्चल होने पर मोक्ष की उपलब्धि होती है। अतएव उदासीनता (निष्क्रियता)-पूर्वक चित्त को स्थिर करना चाहिए।
कायोत्सर्ग और अमनस्क साधना 55
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