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होती है । वह रौद्र ध्यान के हिंसा आदि चार प्रकारों में से किसी एक में अत्यन्त आसक्ति से प्रवृत्त होता है ।
2. बहुल दोष — उसमें हिंसा, झूठ, चोरी आदि दोषों की बहुलता आ जाती है।
3. नानाविध दोष — रौद्र ध्यानी हिंसा, झूठ आदि अनेक क्रूर व दुष्ट प्रवृत्तियों को अपने सुख का हेतु मानता है । उसमें भयंकर अज्ञान होता है, अतः वह नानाविध दोष करता है ।
4. आमरण दोष — रौद्र ध्यानी के हिंसा, झूठ आदि पापों के सेवन में जीवन-बुद्धि होती है, अतः वह इन्हें मृत्युपर्यन्त बनाये रखना चाहता है, यह आमरण दोष है ।
यह चार प्रकार का रौद्र ध्यान राग, द्वेष और मोह से व्याकुल जीव के होता है । वह सामान्यरूप से उसके संसार को बढ़ाने वाला है तथा विशेष रूप से वह नरकगति का मूल कारण है ।
उक्त हिंसानुबंधी आदि चार प्रकार के रौद्र ध्यान में बाह्य करण (वचन और काय) उपभोगयुक्त होकर प्रवृत्त हुए रौद्र ध्यानी जीव के उत्सन्न दोष, बहुल दोष, नानाविध दोष और आमरण दोष होते हैं। ये उसके लिंग ज्ञापक चिह्न हैं, जिनके द्वारा वह पहिचाना जाता है ।
• रौद्र ध्यानी पर - पीड़ा में प्रसन्न होता है :
परवसणं अहिनंदड़ निरवेक्खो निद्दओ निरणुतावो । हरिसिज्जइ कयपावो रोद्दज्झाणोवगयचित्तो ॥ 27 ।।
रौद्र ध्यान में संलग्न जीव दूसरों के दुःख का अभिनन्दन करता है, दूसरों को विपत्ति में देख अति प्रसन्न होता है । वह निरपेक्ष होता है, दूसरों को विनाश व दुःख से बचाने का प्रयत्न नहीं करता है । निर्दयी होता है, असंवेदनशील होता है और अनुताप रहित होता है । वह हिंसादि पाप करके हर्षित होता है । ये रौद्र ध्यान के लक्षण हैं।
व्याख्या :
रौद्र ध्यानी दूसरों को पीड़ित तो करता ही है, वह दूसरों को दुःखी देखकर प्रसन्न होता है, दुःखी के प्रति उसके हृदय में अनुकम्पा, दया व सहानुभूति उत्पन्न नहीं होती है, वह पापाचरण में प्रवृत्त रहता है ।
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ध्यानशतक 77
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