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________________ धर्म्य ध्यान • धर्म्य ध्यान का निरूपण करने हेतु ग्रन्थकार कहते हैं: झाणस्स भावणाओ देसं कालं तहाऽऽसणविसेसं। आलंबणं कमं झाइयव्वयं जे य झायारो ।। 28 ।। तत्तोऽणुप्पेहाओ लेस्सा लिंगं फलं च नाऊणं। धम्मं झाइज्ज मुणी तग्गयजोगो तओ सुक्कं।। 29 ।। शुभ ध्यान साधक मुनि को भावना, देश, काल तथा आसन विशेष, आलम्बन, क्रम, ध्येय, ध्याता, अनुप्रेक्षा, लेश्या, लिंग और फल को जानकर धर्म ध्यान में तत्पर होना चाहिए। धर्म ध्यान का अभ्यास करने के पश्चात् उसे शुक्ल ध्यान में संलग्न होना चाहिए। व्याख्या : शुभ ध्यान में भावना 12 द्वार भूमिका का कार्य करते हैं। अतः शुभ ध्यान में स्थित होने के लिये भावना आदि का स्थान महत्त्वपूर्ण है। अतः क्रमश: उनका निरूपण किया गया है। • भावना ध्यान में सहायक है: पुण्णकयभासो भावणाहि झाणास्स जोग्गयमुवेइ। ताओ य नाण-दसण-चरित्त-वेरग्गानियताओ।।30 ।। जिसने भावनाओं के माध्यम से ध्यान का पहले अभ्यास किया है वह ध्यान करने की योग्यता प्राप्त कर लेता है। भावनाएँ चार प्रकार की हैं- 1. ज्ञान भावना, 2. दर्शन भावना, 3. चारित्र भावना और 4. वैराग्य भावना। व्याख्या : ध्यान करने से पूर्व भावनाओं का आदर (आचरण) करने रूप अभ्यास करना चाहिए। इससे ध्यान करने की योग्यता प्राप्त होती है। ये भावनाएँ ज्ञान, दर्शन, चारित्र व वैराग्य रूप हैं। इनसे ज्ञानादि की प्राप्ति होती है अथवा जिसने भावनाओं के द्वारा पहले अभ्यास किया है वह पुरुष ही ध्यान की योग्यता को प्राप्त होता है और वे भावनाएँ ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वैराग्य रूप होती हैं। • ज्ञान भावना का निरूपण करते हैं: णाणे णिच्चब्भासो कुणइ मणोधारणं विसुद्धिं च। नाणगुणमुणियसारो तो झाइ सुनिच्चलमईओ ।।31 ।। 78 ध्यानशतक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001216
Book TitleDhyanashatak
Original Sutra AuthorJinbhadragani Kshamashraman
AuthorKanhaiyalal Lodha, Sushma Singhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages132
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Dhyan
File Size7 MB
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