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इस सम्बन्ध में मेरा मानना है कि आचार्य हरिभद्र ने ध्यानशतक के रचनाकार का नामोल्लेख नहीं किया, इससे यह सिद्ध नहीं होता कि हरिभद्र ध्यानशतक का रचयिता जिनभद्र को नहीं मानते या हरिभद्र यह नहीं जानते कि ध्यानशतक का रचयिता कौन है? हरिभद्र ने 'शास्त्रान्तर' पद का प्रयोग किया है। इससे स्पष्ट है कि हरिभद्र जिस भद्रबाह की आवश्यकनियुक्ति की व्याख्या कर रहे हैं उस ग्रन्थ से अलग (भिन्न) ग्रन्थ ध्यानशतक है, इसलिये ध्यानशतक के लिए वे 'शास्त्रान्तर' शब्द का प्रयोग करते हैं, अत: ध्यानशतक भद्रबाहु की रचना नहीं हो सकती और ध्यानशतक आवश्यकनियुक्ति का एक अंग न होकर स्वतन्त्र भिन्न ग्रन्थ है।
टीकाकारों की यह प्राचीन प्रणाली रही कि वे ग्रन्थकार का स्पष्ट नाम दिये बिना कई बार केवल भाष्यकार/टीकाकार/ग्रन्थकार/आचार्य/ पूर्व सूरिभिः आदि विशेषण देकर ही उनके ग्रन्थों से कुछ भी उद्धरण देते रहे हैं। उदाहरणार्थ1. आवश्यकनियुक्ति गाथा एक पर की गई हरिभद्र की टीका में 'भाष्यकार'
पद का प्रयोग किया है। और ग्रन्थ तथा ग्रन्थकार का नामोल्लेख किये बिना विशेषावश्यक भाष्य की गाथा संख्या 436-'दोवारे
विजयाईसु....' उद्धृत की है। 2. अन्यत्र आवश्यकनियुक्ति की 734वीं गाथा पर टीका करते हुए हरिभद्र
भाष्यकार के नाम और ग्रन्थ का उल्लेख किये बिना केवल भाष्यकार कहकर एक गाथा उद्धृत करते हैं- आह च भाष्यकार:खेत्तं महसेण वणोवलक्खियं जत्थ निग्गथं पुव्विं। सामाइयमन्नेसु य परंपरविणिग्गमो तस्स ।। 1 ।।15 यह गाथा जिनभद्र रचित विशेषावश्यक भाष्य की 2089वीं गाथा है,16 जिसके प्रारम्भ में 'त च' के स्थान पर 'खेत्तं' लिखने का अन्तर है। विशेषावश्यक भाष्य की गाथा 2089 में 'तं च' पद है। यहाँ यह ध्यातव्य है कि विशेषावश्यक भाष्य की गाथा संख्या 2088 (पृष्ठ-432) का प्रारम्भ 'खेत्तं' से है।” लिपिकार की त्रुटिवश ऐसा हुआ है। 3. विशेषावश्यक भाष्य की प्रथम गाथा पर वृत्ति लिखते समय हेमचन्द्र यह
जानते हैं कि यह गाथा जिनभद्र की लिखी हुई है फिर भी उस गाथा का
प्रारम्भ 'आह भाष्यकार:' से करते हैं।18 4. हेमचन्द्र-मलधारिन् को ज्ञात है कि जिनभद्र क्षमाश्रमण ने अपने
प्रस्तावना 29
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