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________________ विशेषाव-श्यक भाष्य पर स्वोपज्ञ लिखा, फिर भी विशेषावश्यक भाष्य की 555वीं गाथा पर टिप्पणी की कि इस गाथा पर पूर्व टीकाकारों ने कोई व्याख्या नहीं की, किन्तु इस पर 'कण्ठ्या ' कहकर यह गाथा बिना व्याख्या किये छोड़ दी- 'इयं च गाथा पूर्व टीकाकारैर्गृहीता, 'कण्ठ्या' इति च निर्दिष्टा, न तु व्याख्याता;....'' 5. हरिभद्र को ज्ञात है कि आवश्यकनियुक्ति भद्रबाह की रचना मानी जाती रही है, तथापि आवश्यकनियुक्ति की प्रथम गाथा की पूर्वपीठिका के प्रारम्भ में गाथा का परिचय केवल 'तच्चेदम्' पद से करते हैं। उसी आवश्यकनियुक्ति की गाथा-1 (जो विशेषावश्यक भाष्य भाग-1 के पृष्ठ-26 पर गाथा 79 है) को विशेषावश्यक भाष्य की गाथा 79 अथवा गाथा 80 (पृष्ठ-27) में कहीं पर भी इस रूप से परिचित नहीं कराया है कि वह आवश्यकनियुक्ति की प्रथम गाथा है। जिनभद्र ने अपने स्वोपज्ञ भाष्य में भी ऐसा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है कि 'यह नियुक्ति गाथा है' अथवा 'यह नियुक्तिकार भद्रबाहु रचित गाथा है' आदि-आदि। 6. हरिभद्र ने आवश्यकनियुक्ति की 'जम्मणे नाम वुड्ढी.....' इस 186वीं गाथा का परिचय मात्र 'आह नियुक्तिकार:' कहकर दिया, नामोल्लेख नहीं किया।21 सारांश यह है कि टीकाकार जानते हुए भी अपनी-अपनी टीकाओं में जो गाथाएँ उद्धृत करते हैं, उन गाथाओं के रचयिता का स्पष्ट नामाभिधान कई बार करते ही नहीं। इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि वह उद्धृत गाथा उन टीकाकारों के मत से अन्य लिखित हो अथवा प्रकृत ग्रन्थ की न हो। अतः पण्डित दलसुख मालवणिया द्वारा उठाई गई शंका निर्मूल है तथा ध्यानशतक को जिनभद्र क्षमाश्रमण की रचना मानने में कोई आपत्ति नहीं है। पण्डित बालचन्द्र शास्त्री ने भी ध्यानशतक की प्रस्तावना में जिनभद्र क्षमाश्रमण को ध्यानशतक का रचयिता मानने में सन्देह व्यक्त किया है। बालचन्द्र शास्त्री लिखते हैं-'यद्यपि ध्यानशतक की कुछ प्रतियाँ अहमदाबाद, मुम्बई और पाटण में विद्यमान हैं, पर इसके लिये वहाँ लिखने पर न तो कोई प्रति ही मिल सकी और न कुछ उत्तर ही प्राप्त हुआ। इससे उसका सम्पादन आवश्यक सूत्र टीका में उद्धृत व मुद्रित संस्करण तथा विनयसुन्दर चरण ग्रन्थमाला द्वारा प्रकाशित स्वतन्त्र संस्करण के ही आधार पर किया गया है। 22 विनयसुन्दर चरण ग्रन्थमाला से प्रकाशित संस्करण में अन्तिम 106वीं गाथा 30 ध्यानशतक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001216
Book TitleDhyanashatak
Original Sutra AuthorJinbhadragani Kshamashraman
AuthorKanhaiyalal Lodha, Sushma Singhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages132
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Dhyan
File Size7 MB
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