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________________ है। शैली, भाषा आदि की अपेक्षा से इसे विशेषावश्यक भाष्य के कर्ता जिनभद्रगणि की कृति मान लेना ही सम्भव है। रचनाकाल जहाँ तक प्रस्तुत कृति के रचनाकाल का प्रश्न है, यदि हम इसे जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण की रचना मानते हैं तो उनका जो काल है वही इस कृति का रचनाकाल होगा। 'विचार श्रेणी' ग्रन्थ के अनुसार जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण का स्वर्गवास वीर सम्वत् 1120 में हुआ, तदनुसार उनका स्वर्गवास विक्रम सम्वत् 650 या ईसवी सन् 593 माना जा सकता है। धर्मसागरीपट्टावली के अनुसार जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण का स्वर्गवास-काल विक्रम सम्वत् 705 के लगभग माना जाता है, तदनुसार वे ईसवी सन् 649 में स्वर्गस्थ हुए। चूँकि विशेषावश्यक भाष्य और उसकी स्वोपज्ञटीका उनकी अन्तिम कृति के रूप में माने जाते हैं, अत: इतना सुनिश्चित है कि 'झाणाज्झयण' की रचना ईसवी सन् की 7वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में ही कभी हुई है। यह निश्चित है कि जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ईसवी सन् 601 अर्थात् शक सम्वत् 531 के पूर्व हुए हैं, क्योंकि शक सम्वत् 531 में लिखी विशेषावश्यक भाष्य ताड़पत्रीय प्रति के आधार पर प्रतिलिपि की गई अन्य ताड़पत्रीय प्रति आज भी जैसलमेर भण्डार में उपलब्ध है। इस प्रकार विशेषावश्यक भाष्य की रचना शक सम्वत् 531 अर्थात् ईसवी सन् 609 से पूर्व ही हई है, अत: विशेषावश्यक भाष्य का रचनाकाल सातवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध के बाद नहीं ले जाया जा सकता है, अत: ध्यानशतक की रचना ईसवी सन की छठी शताब्दी के उत्तरार्द्ध और सातवीं शती के प्रथम दशक के पूर्व ही माननी होगी। पण्डित दलसुखभाई ने इसे नियुक्तिकार भद्रबाहु की रचना होने की कल्पना की है। यद्यपि हम पूर्व में ही इस कल्पना को निरस्त कर चुके हैं फिर भी यदि हम नियुक्तियों का रचनाकाल ईसा की दूसरी-तीसरी शताब्दी मानते हैं तो प्रस्तुत कृति के रचनाकाल की पूर्वसीमा ईसा की 2-3 शताब्दी और उत्तरसीमा ईसवी सन् की छठी शताब्दी का उत्तरार्द्ध माना जा सकता है। ____ पण्डित बालचन्द्रजी ने अपनी प्रस्तावना में ध्यानशतक के आधार रूप स्थानांग आदि सभी अर्धमागधी आगमों को वल्लभी वाचना अर्थात् ईसा की 5वीं शताब्दी की रचना माना है, किन्तु यह उनकी भ्रान्ति ही है। वल्लभी वाचना वस्तुतः अर्धमागधी आगमों का रचनाकाल न होकर उनकी अन्तिम वाचना का 18 ध्यानशतक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001216
Book TitleDhyanashatak
Original Sutra AuthorJinbhadragani Kshamashraman
AuthorKanhaiyalal Lodha, Sushma Singhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages132
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Dhyan
File Size7 MB
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