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________________ चणियुक्त नन्दीसूत्रका विषयानुकम सूत्र २५ विषय केरल ज्ञान के भवस्थ और मिकेवलज्ञान दो भेट ३४-३६ भवस्थकेवलज्ञानके भेद और स्वरूप सिद्धके लज्ञान के अनन्तरसिद्ध परम्पर सिद्ध दो भेद अननरसिद्धके तीर्थसिद्ध, अतीर्थमिद्ध आदि पंद्रह भेद चूणिमें-पद्रह भे में का विस्तृत स्वरूप परम्परांसद्ध विज्ञान द्रव्य क्षेत्र काल भाव आश्री कंवलज्ञानका २६ ३ २८ चूर्णिमें केवलज्ञान-कैवलदानविषयक युगपदुपयोग-एकोपयोग-कमोपयोगवादी चर्ना २८-३० गा ५४-५५ केवयज्ञानका उपसंहार ३० परोक्षज्ञानके आभिनिबंधिक श्रुतज्ञान द भेद ३१ आभि नोधिकज्ञान और श्रुतज्ञानकी देव सहभाविता चूणिमें -मतिज्ञान और श्रुतज्ञानका पृथकरण मतिज्ञान और मतिअज्ञान तथा श्रुतज्ञान और श्रुतअज्ञानका तात्त्विक विवेक ३२ आभिनिवाधिक ज्ञानके श्रुतनिश्रित अश्रुतनिश्रित दो मेद अश्रुतनिश्रित आभिनिवाधिकज्ञानके भेद, स्वरूप और उहाहरण गा. ५६ अश्रुतनिश्रित आभिनियोधिकके औत्पत्तिकी आदि चार भेद गा. ५७-६. औत्पत्तिको मतिका स्वरूप और उदाहरण गा. ६१-६३ वनयिकी मतिका स्वरूप और उदाहरण, गा.६४-६५ कमजा मतिका स्वरूप और उदाहरण, गा. ६६-६९ पारिणामिक मतिका स्वरूप और उदाहरण ध्रुनिश्रित मतिज्ञान के अपग्रह, ईहा आदि चार भेद अवग्रह के अर्थावग्रह व्यजनावग्रह दो भेद ३४ न्यञ्जनावग्रहके मेद और स्वरूप भर्थावग्रहके मेद और एकाथिक शब्द ईहाके मेद और एकाधिक शब्द विषय ५२ आयके भेद और एकाथिक शब्द ३५ धारणाके मेद और एकाथिक शब्द ५४ ५६ २८ प्रकार के मतिज्ञानका और व्यअनाव ग्रह का प्रतिव'धक और मालक दृष्टान्त द्वारा रूपनिरूपण द्रव्यक्षेत्र काल भाव आश्री आभिनियोधिक सानका स्वरूप ४२ गा. ७०-७५ आभिनिवोधिक ज्ञानके भेद, अर्थ, कालमान, शब्दश्रवणका स्वरूप, एकाथिक शब्द और एसंहार श्रुतः नके चौदह भेद ६०-६३ १ अमरचक संज्ञाक्षर, व्य जनाक्षर और लध्यक्षर, तीन भेद और स्वरूप ६४ २ गा. ७६ अनक्षरध्रुत ६५-६८ ३ संजिथुनके कालिक्युपदेश, हेनूपदेश और दृष्टिवादोपदेश तीन प्रकार, स्वरूप और ४ असंज्ञिश्रुत ४५-४७ चूर्णिमें -ईहा, अपोह, मागणा, गवेषणा, चिन्ता, विमर्श इन शब्दोंके अर्थका स्पष्टीकरण ५ सम्यक्श्रुत-द्वादशाङ्गी के नाम ६ मिथ्याश्रुत-भारत, रामायण हेभी मासुरुपख आदि प्राचीन अनेक जैनेतर शास्त्रोंके नाम और सम्यक्श्रुत-मिथ्याश्रुतका तारिक विवेक ४९-५० ७१-७३ ७-८ यादि-अनादि ९-१० सपर्यवसित अपयवसित श्रुतज्ञान, और उनका द्रव्य क्षेत्र काल भाव आश्री स्वरूप ५१ ७४-७५ पर्यवाग्राक्षरका निरूपण और अतिगाढ कर्मावृत दशामें भी जीवको अक्षर के अनन्तमें भाग जितने ज्ञानका शाश्वतिक सद्भाव ५२ चूर्णिमें- अक्षरपटल का विस्तृत निरूपण ५२-५६ . ११-१२ गमिक अगमिक श्रुतज्ञान १३-१४ अङ्गप्रविष्ट और अङ्गबाह्यश्रुत ५६ अङ्ग बाह्यश्रुतके आवश्यक और आवश्यकव्यतिरिक्त दो प्रकार आवश्यकश्रुत आवश्यकश्रुतके कालिक और उत्कालिक दो प्रकार Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001150
Book TitleAgam 44 Chulika 01 Nandi Sutra
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorJindasgani Mahattar, Punyavijay
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2004
Total Pages142
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, G000, G010, & agam_nandisutra
File Size22 MB
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