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चूर्णियुक्त नन्दीसूत्रका विषयानुक्रम
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७-१२
विषय चूर्णिकारका उपक्रम-प्रारम्भ गाथा १३ मङ्गलसत्र-गाथा २-३ महावीरपरमात्माकी स्तुति गाया ४-१७ सङ्घस्तुतिसूत्र-श्रीसंघकी रथ, चक्र, नगर, पद्म, चन्द्र, सूर्य, समुद्र
और मन्दरगिरिके रूपकों द्वारा स्तुति गाथा १८-१९ जिनावलीसूत्र- चोवीस जिनोंको नमस्कार गाथा २०-२१ गणधरावलीसूत्रभगवान् महावीरके ११ गणधरोंकी स्तुति गाथा २२-४२ स्थविगवलीसूत्रश्रुतस्थविरोंकी स्तुति गा. २२ सुधर्मा, जम्बूस्वामि, प्रभवस्वामि, शय्यम्भव, गा. २३ यशोभद्र, सम्भूताय, भद्रबाहु, स्थूलभद्र, गा. २४ महागिरि, सुहस्ती, बहुल, गा. २५ स्वाति, श्यामार्य, शाण्डिल्य, जीवधर, गा. २६ आर्यसमुद्र, गा. २७ आयमङ्गु, गा. २८ आर्यनन्दिल, गा. २९ वाचक आर्यनागहस्ती, गा. ३० रेवतिनक्षत्र वाचक, गा. ३१ सिंहवाचक, गा. ३२ स्क्रन्दिलाचाय, गा. ३३ हिमवन्त गा. ३४-३५ नागाजुन वाचक, गा. ३६-३८ भूतदिनाचाय, गा. ३९ लौहित्य, ४०-४१ दुष्यगणि, गा. ४२ सामान्यरूपसे सर्व स्थविरों की स्तुति गा. ४३ पर्षत्सूत्र-ज्ञानके-शास्त्रके अधिकारि-अनधिकारी शिष्यों की परीक्षा लिये शलघन, कुट, चालनी, परिपूगक, हंस आदिके लाक्षणिक उदाहरण और ज्ञपर्यद् अज्ञपर्षद् एवं दुर्विदग्धपर्पत् १२ शानसूत्र- पांच ज्ञानके नाम मत्यादि पांच ज्ञानकी व्युत्पत्ति, कम आदिका निरूपण मत्यादिज्ञानोंका प्रत्यक्ष परोक्ष रूपमें विभाजन १४
विषय प्रत्यक्षज्ञनके इन्द्रिय प्रत्यक्ष मोइन्द्रिय प्रत्यक्ष दो मेद इन्द्रियप्रत्यक्षके पांच भेद नोइन्द्रियप्रत्यक्षके तीन भेद अवधिप्रत्यक्षके दो भेद-क्षायोपशमिक और भवप्रत्ययिक क्षायोपशमिक तथा गुणप्रत्ययिक अवधिज्ञानका स्वरूप
अवधिज्ञानके आनुगामिकादि छ भेद १५-२१ १ ग्रामिक अवधिज्ञानका स्वरूप, उसके
न और मध्यगत भेद तथा पुरतो अन्तगत, मागतो अन्तगत, पाश्वतो : अन्तगतादि प्रभेदों का स्वरूप,उन में प्रतिविशेष आदिका निरूपण २ अनानुगामिक अवधिज्ञान ३ वधमानक अवधिज्ञान, गाथा ४४-४५ अवधिज्ञानका जघन्य और उत्कृष्ट अवधिक्षेत्र. गा. ४६-४९ द्रव्य-क्षेत्र-काल-भानकी अपेक्षासे अवधिज्ञानकी वृद्धिका स्वरूप गा ५० द्रव्य-क्षेत्र काल-भावका पारस्परिक वृद्धिका स्वरूप गा. ५१ क्षेत्र-कालकी सूक्ष्मताका निरूपण ४ हीयमान अवधिज्ञान ५ प्रतिपाति अवधिज्ञान ६ अप्रतिपाति आधिज्ञान द्रव्य क्षेत्र काल भाव आश्री अवधिज्ञानका स्वरूप गा. ५२ अवधिज्ञानका उपसंहार मनःपयवज्ञानका अधिकारी
मनःपयवज्ञानके ऋजुमत विपुलमति दो भेद ३१-३२ द्रव्य क्षेत्र काल भाव आश्री ऋजुमति
विपुलमतिमनःपर्यवज्ञानका स्वरूप और गा. ५३ मनःपयवज्ञानका उपसंहार चूर्णिमें- अष्ट रुचकप्रदेश और उपरिम-अधस्तन क्षुल्लकप्रतरका स्वरूप
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