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सूत्र और जूणिकी भाषा नन्दीमूत्र और इसकी चूर्णिकी भाषा का स्वरूप क्या है ? इस विषयमें अभी यहाँ पर अधिक कुछ मैं नहीं लिखता हूं। सामान्यतया व्यापकरूपसे मेरेको इस विषयमें जो कुछ कहना था, यह मैंने अखिलभारतीयप्राच्यविद्यापरिषत्-श्रीनगरके लिये तैयार किये हुए मेरे "जैन आगमधर और प्राकृत वाङ्मय" नामक निबन्धमें कह दिया है, जो ' श्रीहजारीमल स्मृतिग्रन्थ 'में प्रसिद्ध किया गया है, उसको देखनकी विद्वानोंको सूचना है।
परिशिष्टादि चूर्णिके अन्त में पांच परिशिष्ट और शुद्धिपत्र दिये गये हैं। पहले परिशिष्टमें मूल नन्दीसूत्र में जो गाथायें हैं उनको अकारादिक्रममें दी गई हैं। दूसरे परिशियमें नन्दीचूर्णिमें चूर्णिकारने उद्धन किये उद्धरणोंको अकारादिक्रमसे दिये हैं। तीसरा परिशिष्ट चूर्णिगत पाठान्तर और मतान्तरोका है। चौथे परिशिष्टमें नन्दीसूत्र और चूर्णिमें आनेवाले ग्रन्थ, ग्रन्थकार, स्थविर, नृप, श्रेष्ठी, नगर, पर्वत आदि विशेषनामांका अनुक्रम है। पांचवे परिशिष्टमें सूत्र और चूर्णिमें आनेवाले विषयद्योतक एवं व्युत्पत्तिद्योतक शब्दोंका अनुक्रम दिया गया है। इन परिशिष्टोंके बादमें शुद्धिपत्रक दिया गया है । वाचक और अध्येता विद्वानोंसे नम्र निवेदन हैं कि इस ग्रन्थको शुद्धिपत्रके अनुसार शुद्ध करके पढ़ें ।
संशोधन और सम्पादन इस ग्रन्थके संशोधनमें अनेक महानुभाव विद्वान् व्यक्तियोंका परिश्रम है। खास तोरसे पं. भाई अमृतलाल मोहनलाल भोजकका इस सम्पादनमें महत्त्वका साहाय्य है। जिसने चूर्णि और मूल सूत्रकी प्रामाणिक प्राण्डुलिपि (प्रेसकॉपी) तैयार की है, साधन्त प्रपत्र देखे हैं और इस ग्रन्थके महत्त्वपूर्ण परिशिष्ट भी किये हैं। भाई श्री दलसुखभाई माल वणिया-मुख्यनियामक ला. द. भारतीय संस्कृतिविद्यामंदिर-अहमदाबाद तथा पंडित बेचरदासभाई दोसीने मुद्रणके बादमें साद्यन्त देखकर अशुद्धियोंका परिमार्जन किया है, जिसके फलस्वरूप शुद्धिपत्र दिया है। भाई श्रीदलसुख मालवणिया का आगगोंके संशोधनमें शाश्वत साहाय्य प्राप्त है, यह परम सौभाग्यकी बात है।
वसंत प्रिन्टींग प्रेसके संचालक श्री जयंति दलाल और मेनेजर श्री शांतिलाल शाह प्रमुख प्रेसके सर्व भाईओं का प्रस्तुत मुद्रणकार्यमें आंतरिक सहयोग भी हमारे लिए चिरस्मरणीय है।
चूर्णिमाहित नन्दीसूत्रके संशोधनमें मात्र ग्रन्थकी प्रतियोंका ही आधार रखा गया है, एसा नहीं है, किन्तु मूलमूत्र एवं चूर्णिके उद्धरण प्राचीन व्याख्याप्रन्थों में जहाँ जहाँ भी देखने में आये उनसे भी तुलना की गई है। इस प्रकार प्राचीन प्रतियाँ, प्राचीन उद्धरणों के साथ तुलना एवं अनेक विद्वानोंके बौद्धिक परिश्रमके द्वारा इस नन्दीसूत्र एवं चर्णि संशोधन और सम्पादन किया गया है। मैं तो सिर्फ इस संशोधन एवं सम्पादनमें साक्षीभूत ही रहा हूं। अतः इस ग्रन्थके महत्त्वपूर्ण संशोधन एवं सम्पादन का यश हम सभीको एकसमान है।
अन्तमें गीतार्थ मुनिप्रवर एवं विद्वानोंसे मेरी नम्र प्रार्थना है कि मेरे इस संशोधनमें जो भी छोटी मोटी क्षति प्रतीत हो, इसकी मुझे सूचना दी जायगी तो जरूर अतिरिक्त शुद्धिपत्रकी तोग्से उसको आदर दिया जायगा ।
सं. २०२२ माघ शुक्ल पूर्णिमा
अहमदाबाद
मुनि पुण्यविजय
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