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बीओ उद्देसओ। दुविधा नेरतिया पन्नत्ता, तंजहा-आहारगा चेव अणाहारगा चेव, एवं जाव वेमाणिया ५।
दुविहा रतिया पन्नत्ता, तंजहा–उस्सासगा चेव णोउस्सासगा चेव, जाव वेमाणिया ६।
दुविहा नेरेइया पन्नत्ता, तंजहा—सइंदिया चेव अणिदिया चेव, जाव ५ वेमाणिया ७।
दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तंजहा—पज्जत्तगा चेव अपजत्तगा चेव, जाव वेमाणिया ८।
दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तंजहा–सन्नि चेव असन्नि चेव, एवं पंचेंदिया सव्वे विगलिंदियवज्जा, जाव वाणमंतरा ९।
दुविधा नेरइया पन्नत्ता, तंजहा—भासगा चेव अभासगा चेव, एवमेगिंदियवज्जा सव्वे १०॥
दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तंजहा—सम्मदिट्ठीया चेव, मिच्छदिट्ठीया चेव, एंगिदियवजा सव्वे ११।
दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तंजहा—परित्तसंसारिता चेव अणंतसंसॉरिता १५ चेव, जाव वेमाणिया १२।
दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तंजहा—संखेजकालसमयद्वितीया चेव असंखेजकालसमयद्वितीया चेव, एवं पंचेंदिया एगिदियविगलिंदियवजा जाव वाणमंतरा १३।
दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तंजहा-सुलभबोधियाँ चेव दुल्लभबोधियाँ चेव, २० जाव वेमाणिया १४।
१. नेरयिता पा० ॥ २. “संज्ञिदण्डके संझिनो मनःपर्याप्त्या पर्याप्तकाः, तया अपर्याप्तकास्तु ये ते असंज्ञिन इति । एवं पंचिंदियेत्यादि..."यथा नारकाः...."एवं विगलेंदियवज त्ति ....... दण्डकावसानमाह-जाव वेमाणिय त्ति....." । क्वचिद् जाव वाणमंतर त्ति पाठः, तत्रायमर्थः
-येऽसंज्ञिभ्यो नारकादितयोत्पद्यन्ते तेऽसंज्ञिन एवोच्यन्ते, असंज्ञिनश्च नारकादिषु व्यन्तरावसाने त्पद्यन्ते न ज्योतिष्क-वैमानिकेष्विति तेषामसंशित्वाभावादिहाग्रहणमिति"-अटी.॥ ३. सम्मट्ठिीया चेव मिच्छहिट्ठीया पा० विना ॥ ४. एगें° पा० ला० ॥ ५. रिया ला. पासं०॥ ६. “संखेजकालटिइय त्ति क्वचित् पाठः"-अटी.॥ ७, ८. °य चैव पा० ला०॥ ९. °णिता पा०॥
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