________________
प्रस्तावना
शान्तिसेन हैं, जो उनके पट्टाधिकारी हुए थे। और दूसरे अर्जुनसुत सोयरा हैं, जिन्होंने 'कैलास-छप्पय' बनाया है और जिसमें उन्होंने अपने गुरु नरेन्द्रसेनकी चम्पापुर-यात्राका भी वर्णन किया है। ये अर्जुनसुत सोयरा गृहस्थ मालूम होते हैं। किन्तु शान्तिसेन उनके पट्टाधिकारी भट्टारक-शिष्य थे। 'नरेन्द्रसेनगुरु-पूजा'के कर्ता यदि इन दोनोंसे भिन्न हैं तो नरेन्द्रसेनके एक तीसरे भी शिष्य रहे, जिन्होंने उक्त पूजा लिखी है । शान्तिसेनकी एक शिष्या शिखरश्री नामकी आर्यिका थीं, जिनका उल्लेख इन्हीं आर्यिकाके शिष्य बनारसीदासने सं० १८१६ में लिखी 'हरिवंस रास'को प्रतिमें किया है । (ङ) नरेन्द्रसेनका समय :
नरेन्द्रसेनका समय प्रायः सुनिश्चित है । इन्होंने वि० सं० १७८७ में पूर्वोल्लिखित 'ज्ञानयन्त्र'की प्रतिष्ठा करवायी थी और वि० सं० १७९० में पुष्पदन्तके 'यशोधरचरित'की प्रतिलिपि स्वयं की थी। अतः इनका समय वि० सं० १७८७-१७९०, ई० सन् १७३०-१७३३ है। (च) नरेन्द्रसेनका व्यक्तित्व और कार्य :
ये नरेन्द्रसेन एक प्रभावशाली भट्टारक विद्वान् थे। इनके प्रभावका सबसे अधिक परिचायक 'कैलास-छप्पय'का वह उल्लेख है, जिसमें उन्हें 'चंपापुर' नगर में हुए एक 'वादका विजेता' कहा गया है और तेजस्विता में 'मार्तण्ड' बताया गया है । नरेन्द्रसेनने वहाँके वातावरणको प्रभावित कर वहाँ जिनमन्दिरका निर्माण कराया था, जिसकी ध्वजा गगनमें फहरा रही थी। इनके एक शिष्यने इनके प्रभाव और गुरु-भक्तिसे प्रेरित होकर संस्कृत में 'नरेन्द्रसेनगुरु-पूजा' लिखी है, जिसका उल्लेख हम ऊपर कर आये हैं। इससे स्पष्ट है कि नरेन्द्रसेन एक यशस्वी, प्रभावक और शास्त्रार्थनिपुण
१. २. देखिए, वही पृ० ३२,२१, लेखांक ७३,६९ । ३. देखिए, वही पृ० ३२, २१, लेखांक ७३, ६९ । ४. देखिए , इसी ग्रन्थकी प्रस्तावना पृष्ट ५७ का पादटिप्पण ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org