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________________ ५८ प्रमाणप्रमेयकलिका (घ) नरेन्द्रसेनकी गुरु-शिष्य-परम्परा : (१) गुरु-परम्पराः इन नरेन्द्रसेनके द्वारा सूरतके आदिनाथ चैत्यालयमें रहते हुए वि० सं० १७९०में प्रतिलिपि को गयो 'यशोधरचरित' की प्रतिमें तथा 'नरेन्द्रसेनगुरु-पूजा' में इनकी गुरु-परम्परा निम्न प्रकार पायो जाती है': सोमसेन ( अभिनव सोमसेन ) जिनसेन समन्तभद्र छत्रसेन नरेन्द्रसेन काष्ठासंघ-मन्दिर, अंजनगाँवको विरुदावलीमें जो विस्तृत गुरुपरम्परा मिलती है उसमें उक्त नामोंके अतिरिक्त सोमसेनसे पूर्व गुणभद्र, वीरसेन, श्रुतवीर, माणिक्यसेन, गुणसेन, लक्ष्मीसेन, सोमसेन ( प्रथम ) माणिक्यसेन ( द्वितीय ), गुणभद्र ( द्वितीय )के भी नाम दिये गये हैं और उक्त सोमसेनका 'अभिनव सोमसेन'के नामसे उल्लेख है । विरुदावलीमें नरेन्द्रसेनके बाद उनके पट्टपर बैठनेवाले शान्तिसेनका भी निर्देश है। इन तीनों आधारोंसे सिद्ध है कि इन नरेन्द्रसेनके साक्षात् गुरु छत्रसेन और दादागुरु समन्तभद्र थे। (२) शिष्य-परम्परा : इन नरेन्द्रसेनके दो शिष्योंके नाम मिलते हैं। एक तो उपर्युल्लिखित १. देखिए, भ० संप्र० पृ० २०, लेखांक ६५ तथा ६६ । २. देखिए, वही पृ० २३, लेखांक ७६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001146
Book TitlePramanprameykalika
Original Sutra AuthorNarendrasen Maharaj
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size7 MB
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