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________________ प्रस्तावना इस प्रकार पृथक् एवं स्वतंत्र व्यक्तित्व रखनेवाले नरेन्द्रसेन नामके चार विद्वान् हमारे परिचयमें आते हैं और जो विभिन्न समयोंमें पाये जाते हैं । जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं । (ग) प्रमाणप्रमेयकलिकाके कर्ता नरेन्द्रसेन : उक्त नरेन्द्रसेनोंमें प्रस्तुत प्रमाणप्रमेयकलिकाके कर्ता सातवें नरेन्द्रसेन जान पड़ते हैं। इसमें ग्रन्थका अन्तःपरीक्षण विशेष साक्षी है। उसपरसे यह जाना जाता है कि इसके कर्ता अर्वाचीन हैं और वे तर्कशास्त्रकुशल छत्रसेनके शिष्य सातवें नं० के नरेन्द्रसेन ही संभव हैं। 'नरेन्द्रसेनगुरु-पूजा' में, जो एक सुन्दर संस्कृत-रचना है और जिसमें नरेन्द्रसेनको गुणस्तुति एवं यशोगान किया गया है, इनके गुरु छत्रसेनको 'तर्कशास्त्रकुशल' तथा दादागुरु समन्तभद्रको 'शास्त्रार्थपारंगत' कहा गया है। इससे विदित होता है कि ये छत्रसेन-शिष्य एवं समन्तभद्र-प्रशिष्य नरेन्द्रसेन भी तर्कशास्त्री तथा 'शास्त्रार्थ-निपुण' अवश्य रहे होंगे। हमारी इस संभावनाकी पुष्टि इनके एक शिष्य अर्जुनसुत सोयरा-द्वारा शक संवत् १६७३ (वि० सं० १८०८ ) में रचे गये 'कैलास-छप्पय से हो जाती है, जिसमें अर्जुनसुत सोयराने नरेन्द्रसेनको 'वादविजेता' ( शास्त्रार्थी ) और सूर्यके समान 'तेजस्वो' बतलाया है। प्रमाणप्रमेयकलिका इन्हीं छत्रसेन-शिष्य नरेन्द्रसेनकी रचना होनी चाहिए। १. देखिए, म. संप्र० पृ० २०, लेखाङ्क ६६ । २, ३. 'तस पट्टे सुखकारनाम भट्टारक जानो। नरेन्द्रसेन पट्टधार तेजे मार्तड वखानो ॥ जीती वाद पवित्र नगर चंपापुर माहे । करियो जिनप्रासाद ध्वजा गगने जइ सोहै ॥२६॥' -भ० संप्र० पृ० २१, लेखांक ६९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001146
Book TitlePramanprameykalika
Original Sutra AuthorNarendrasen Maharaj
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size7 MB
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