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________________ २८ प्रमाणप्रमेयकलिका इन्द्रिय-विषयकी छाया पड़नेपर भी अपरिणामी पुरुषमें भोक्तृत्वरूप परिणमन नहीं हो सकता। तथा पुरुष जब सर्वथा निष्क्रिय एवं अकर्ता है तो वह भुजि-क्रियाका भी कर्ता नहीं बन सकता और तब वह 'भोक्ता' नहीं कहा जा सकता। कितने आश्चर्य तथा लोकप्रतोतिके विरुद्ध बात है कि जो (प्रधान ) कर्ता है वह भोक्ता नहीं है और जो ( पुरुष ) भोक्ता है वह कर्ता नहीं है । जबकि यह लोकप्रसिद्ध सिद्धान्त है कि 'जो करेगा वह भोगेगा।' जो प्रधान ज्ञान-परिणामका आधार नहीं देखा जाता, उसे उसका आधार माना जाता है और जो पुरुष 'ज्ञानस्वरूप स्वार्थव्यवसायी' देखने में आता है उसका निरास किया जाता है, यह कैसी विचित्र बात है। ऐसी मान्यताओंको प्रेक्षावानोंने 'दृष्टहानिरदृष्टपरिकल्पना पापीयसी' कहकर उन्हें अश्रेयस्कर बतलाया है। इससे भी बढ़कर आश्चर्य तब होता है जब प्रधानको मोक्षमार्गका उपदेशक कहा जाता है और स्तुति ( पूजाभक्ति-नमन ) मुमुक्षु पुरुषको करते हैं। पाँचवें, पुरुषमें यदि स्वयं रागादिरूप परिणमन करनेकी योग्यता और प्रवृत्ति न हो, तो प्रकृति-संसर्ग उसमें बलात् रागादि पैदा नहीं कर मोक्ताऽऽत्मा चेत्स एवास्तु कर्ता तदविरोधतः ॥ विरोधे तु तयोर्मोक्नुः स्याद्भुजौ कर्तृता कथम् ।' -आप्तप० का० ८१, ८२ । १. 'ज्ञानपरिणामाश्रयस्य प्रधानस्यादृष्टस्यापि परिकल्पनायां ज्ञानात्मकस्य च पुरुषस्य स्वार्थव्यवसायिनो दृष्टस्य हानिः पापीयसी स्यात् । "दृष्टहानिरदृष्टपरिकल्पना च पापीयसी" इति सकलप्रेक्षावतामभ्युपगमनीयत्वात् ।'-आप्तप० पृ० १८६ । २. 'प्रधानं मोक्षमार्गस्य प्रणेतृ, स्तूयते पुमान् ।। मुमुक्षुभिरिति, ब्रूयात्कोऽन्योऽकिञ्चित्करात्मनः ॥' -आप्तप० का० ८३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001146
Book TitlePramanprameykalika
Original Sutra AuthorNarendrasen Maharaj
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size7 MB
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