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________________ प्रमाणप्रमेयकलिका अर्थसमूहोंमें वे पच्चीस तत्त्व आ जाते हैं जिनका सांख्य-शास्त्रमें निम्न प्रकार प्रतिपादन किया गया है : __ प्रकृतिसे महत्-तत्त्वको, महान्से अहङ्कारको, अहङ्कारसे सोलह ( पाँच कर्मेन्द्रिय, पाँच ज्ञानेन्द्रिय, एक मन और पाँच तन्मात्राओं) की और सोलहमें आयी हुई पांच तन्मात्राओंसे पांच भूतोंकी उत्पत्ति होती है। ये चौबीस तत्त्व हैं। पच्चीसवाँ तत्त्व पुरुष है जो निष्किय, कूटस्थ, नित्य, व्यापक और ज्ञानादि परिणामोंसे शून्य केवल चेतन है। यह पुरुष-तत्त्व अनेक है और सबकी अपनी स्वतंत्र सत्ता है। प्रकृति परिणामी-नित्य है। इसमें एक अवस्था तिरोहित होकर दूसरो अवस्था आविर्भूत होती है। यह एक है, त्रिगुणात्मक है, विषय है, सामान्य है और महान् आदि विकारोंको उत्पन्न करती है । कारणरूप प्रकृति 'अव्यक्त' कही जाती है और उससे उत्पन्न होनेवाले कार्यरूप परिणाम-महदादि 'व्यक्त' कहे जाते हैं । इस तरह सांख्योंने प्रकृति अथवा प्रधानपर, जो सामान्यरूप है, अधिक बल दिया है, और इस लिए इनका यह प्रकृतिवाद सामान्यवाद कहा गया है। पुरुषको सांख्य मानते अवश्य हैं, पर वह पुष्कर-पलाशके समान निर्लेप है। उसे न बन्ध होता है और न मोक्ष । बन्ध और मोक्ष दोनों प्रकृतिको ही होते हैं । हाँ, प्रकृतिके १. 'प्रकृतेर्महान् ततोऽहङ्कारः तस्माद् गणश्च षोडशकः । तस्मादपि षोडशकात् पञ्चभ्यः पञ्च भूतानि ॥' -सांख्यका० २२ । २. "त्रिगुणमविवेकि विषयः सामान्यमचेतनं प्रसवधर्मि । व्यक्तं तथा प्रधानं तद्विपरीतस्तथा च पुमान् ॥' -सांख्यका० ११ । ३. 'तस्मान्न बध्यतेऽद्धा न मुच्यते नापि संसरति कश्चित् । संसरति बध्यते मुच्यते च नानाश्रया प्रकृतिः ॥' -सांख्यका० ६२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001146
Book TitlePramanprameykalika
Original Sutra AuthorNarendrasen Maharaj
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size7 MB
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