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________________ प्रमाणप्रमेयकलिका गयी है । कहना न होगा कि प्रस्तावना जैनन्यायके अभ्यासियों और अनेक विद्वानोंकी बौद्धिक भूखको मिटाने में सक्षम होगी। . कृतज्ञता-ज्ञापन: प्रस्तुत संस्करणको इस रूपमें उपस्थित करने में जिन महानुभावोंकी मझे सहायता एवं प्रेरणादि मिले हैं, उनका आभार प्रकाशित करना मेरा विशिष्ट कर्तव्य है। गुरुदेव पूज्य श्रीमुनि समन्तभद्रजी महाराजका सान्निध्य न मिला होता तो इस ग्रन्थका सम्पादन और प्रकाशन सम्भवतः इतनी जल्दी न हो पाता । सम्माननीय डा. ए. एन. उपाध्ये कोल्हापुरने मुझे इस ग्रन्थके सम्पादनके लिए न केवल प्रेरित एवं प्रोत्साहित किया है, अपितु उन्होंने समय-समयपर अनेक परामर्श भी देकर अनुगृहीत किया है। समादरणीय विद्वद्वर पण्डित हीरावल्लभजी शास्त्रीने अपना विद्वत्तापूर्ण प्राक्कथन लिखकर मुझे विशेष आभारी बनाया है। श्री पार्श्वनाथ जैन विद्याश्रम वाराणसीके अधिष्ठाता माननीय पं० कृष्णचन्द्राचार्यने अपनी लायब्रेरीसे उदारतापूर्वक अनेक ग्रन्थ देकर बहुत सुविधा प्रदान की है। भारतीय ज्ञानपीठ काशीकी लायब्रेरीसे उसके सुयोग्य व्यवस्थापक पण्डित बाबूलालजी फागुल्लने भी आवश्यक ग्रन्थोंकी व्यवस्था करके मुझे मदद पहुँचायी है । मित्रवर पण्डित परमानन्दजी शास्त्री दिल्लीने मेरे पत्रका उत्तर देकर तोन नरेन्द्रसेनोंके नाम भेजे हैं । इन सभी सहायकों तथा पूर्वोल्लिखित प्रति-दाताओंका मैं बहुत आभारी हूँ। अन्तमें उन ग्रन्थकारों तथा सम्पादकोंका भी कृतज्ञ हूँ जिनके ग्रन्थों आदिसे मुझे कुछ भी सहायता मिली है । सम्पादक भाद्रशक्ला पञ्चमी, ) दरबारीलाल जैन कोठिया वीरनिर्वाण संवत् २४८७, ५ न्यायाचार्य, शास्त्राचार्य, एम. ए १५ सितम्बर १९६१, प्राध्यापक, संस्कृत-महाविद्यालय, हिन्दू-विश्वविद्यालय, वाराणसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001146
Book TitlePramanprameykalika
Original Sutra AuthorNarendrasen Maharaj
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size7 MB
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