SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्पादकीय संस्करणको विशेषताएँ: (१) यह ग्रन्थ पहली बार प्रकाशित हो रहा है। प्राप्त प्रतियोंके आधारसे पूर्ण सावधानीके साथ इसका संशोधन किया गया है। शुद्ध पाठको मूलमें रखा है और अशुद्ध पाठों एवं पाठान्तरोंको द्वितीय फुटनोटमें दे दिया है। (२) विषय-विभाजन, उत्थानिका-वाक्योंकी योजना और अनुच्छेदों ( पैराग्राफों ) का विभागीकरण कर देनेसे ग्रन्थके अभ्यासियोंको इसके अभ्यास करने एवं पढ़नेमें सौकर्य होगा और कठिनाईका अनुभव नहीं होगा। (३) ग्रन्थमें आये हुए अवतरणोंको इनवर्टेड कॉमाज़में रख दिया गया है, जिससे उनका मूलग्रन्थसे सहजमें पृथक् बोध किया जा सके। साथ ही उनके मूल स्थानोंको भी खोजकर उन्हें [ ] ऐसे कोष्टकमें दे दिया है। अथवा मूल स्थानके न मिलनेपर उसे खाली छोड़ दिया है। (४) ग्रन्थके विषयसे संबद्ध उन उद्धरणोंको भी दूसरे ग्रन्थोंसे तुलनात्मक टिप्पणोंके रूपमें पहले फुटनोटमें दे दिया गया है, जिनसे प्रकृत विषयको समझनेमें पाठकोंको न केवल सहायता ही मिलेगी, अपितु उनसे उनका इस विषयका ज्ञान भी सम्पुष्ट होगा । (५) ग्रन्थको विषय-सूची और पाँच परिशिष्टोंकी योजना भी की गयी है, जो बहुत उपयोगी सिद्ध होंगे। (६) हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसीके संस्कृत-महाविद्यालयमें दर्शनविभागाध्यक्ष विद्वद्वर प्रो० हीराबल्लभजी शास्त्रीका महत्त्वपूर्ण प्राक्कथन, जो कई विषयोंपर अच्छा प्रकाश डालता है, संस्करणको उल्लेखनीय विशेषता है। (७) प्रस्तावनामें जैनन्यायके दोनों उपादानों-प्रमाण और प्रमेय-तत्त्वों पर विस्तृत एवं तुलनात्मक विचार किया गया है। साथमें ग्रन्थ और ग्रन्थकारके सम्बन्धमें ऊहापोहपूर्वक पर्याप्त तथा अभीष्ट सामग्री प्रस्तुत की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001146
Book TitlePramanprameykalika
Original Sutra AuthorNarendrasen Maharaj
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages160
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy