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प्रस्तावना
ग्रन्थ और ग्रन्थकार जैन न्यायकी यह लघु, किन्तु महत्त्वपूर्ण, रचना अभीतक कहींसे प्रकाशित नहीं हई और न किसी विद्वानके द्वारा इसके तथा इसके कर्ताक सम्बन्धमें कोई प्रकाश डाला गया है। यह प्रथम बार प्राचीन जैन ग्रन्थोंकी समु. द्धारक प्राकृत-संस्कृत-ग्रन्थावलि माणिकचन्द्र दि० जैन ग्रन्थमाला बम्बई द्वारा प्रकाशमें आ रही है । अतः यह आवश्यक है कि इस कृति और उसके कर्ताके सम्बन्धमें यहाँ कुछ प्रकाश डाला जाय ।
१.ग्रन्थ (क) प्रमाणप्रमेयकलिका :
यह जैन तार्किक श्री नरेन्द्रसेनको मौलिक न्याय-विषयक कृति है और जैन न्यायके प्राथमिक अभ्यासियों एवं जिज्ञासुओंके लिए बड़ी उपयोगी है। इसमें प्रमाण और प्रमेय इन दो तत्त्वोंपर संक्षेपमें विशद, सरल और तर्कपूर्ण चिन्तन प्रस्तुत किया गया है । (ख) नाम :
न्याय-साहित्यके इतिहाससे मालूम होता है कि न्याय-ग्रन्थकारोंने अपने न्याय-ग्रन्थ या तो 'न्याय' शब्दके साथ रचे हैं; जैसे न्यायसूत्र, न्यायवार्तिक. न्यायप्रवेश आदि । अथवा, 'प्रमाण' या 'प्रमेय', या दोनों 'प्रमाण-प्रमेय' शब्दोंके साथ उनकी रचना की है; जैसे प्रमाणवार्तिक, प्रमाणसंग्रह, प्रमेयकमलमार्तण्ड, प्रमेयरत्नमाला, प्रमाणप्रमेयन्याय आदि । कितने ही ऐसे भी
१. इसका उल्लेख 'जैन ग्रन्थावली' पृष्ठ ७१, वर्ग 9 में है और उसे २२४ ताडपत्रोंका ग्रन्थ तथा जैसलमेरमें होनेका निर्देश किया गया है। यह अप्रकाशित ग्रन्थ है।
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