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________________ 28 जणाया छे. छतां ज्यांS प्रतिमा पत्रो ज मळतां नथी त्यां कारिकाओने पूर्ण करवामां N तथा P प्रतिए अमने घणी ज सहाय करी छे. (जुओ पृ. १३ टि. २ वगेरे). परिशिष्ट-द्वितीय तथा तृतीय परिशिष्टो जोवाथी पूर्वाचार्योए आ ग्रंथने केवो आधारभूत बनाव्यो हतो ते समजाशे. तेमज पूर्वना ग्रंथकारोए एक ज विषय उपर केवी विविध रीते चर्चा-विचारणा करी छे तथा एक बीजा उपर केवी केवी रीते छाया पडी छे ते पण जोवा मळशे. ते ते चर्चा स्त्रीनिर्वाण तथा केवलिभुक्तिना कया कया अंशने मळती आवे छे ए तुलना अमे द्वितीय-तृतीय परिशिष्टना टिप्पणीमां करेली छे. वळी सटीक प्रतिमा केटलांक पत्रो ज नथी तेमां शी वात हशे तेनी पण कल्पना परिशिष्टना केटलाक भाग उपरथी थई शकशे. उपसंहार-आ ग्रंथने बने तेटला श्रमथो शुद्ध करवानो तथा पाठान्तर टिप्पण आदि संस्कारो करवानो प्रयत्न करवामां आव्यो छे. छतां एक मात्र, कंईक अशुद्ध अने खंडित प्रतिने आधारे मुख्यतया आy संपादन थयुं छे, यापनीय संघनी केटलीये विशिष्ट वातो अज्ञात छे इत्यादि कारणे तथा मतिमान्द्यथी आनुं संपादन करवामां जे कोई दोष रही गयो होय के थई गयो होय ते माटे-मिथ्या मे दुष्कृतम्। बहुमान -आगमप्रभाकर मुनिराजश्री पुण्यविजयजी महाराजनी प्रेरणाथी आ ग्रंथ- संपादन में स्वीकार्यु हतुं. पोताना अमूल्य समयनो भोग आपीने घणा परिश्रमपूर्वक अतिदुर्लभ विविध सामग्रीनो संचय करी मारा उपर मोकलीने मारी ग्रंथसंशोधनादि विविध प्रवृत्तिओमां तेओश्री मने घणी ज सहाय अने उपबृहणा सतत करता हता. आ ग्रंथना संपादनमा पण ए रीते ज विविध सहाय अने उपबृंहणा तेमना तरफथी मने मळी छे. तेओश्री प्रति मारो कृतज्ञता अने बहुमाननो उत्कट भाव कया शब्दोथी व्यक्त करुं? । आ ग्रंथ शीघ्र मुद्रित थाय ए माटे तेओश्रीनी तीव्र इच्छा होवा छतां आ ग्रंथ मुद्रित थाय ते पूर्वे ज तेओश्रीनो स्वर्गवास थई गयो. प्रेसोनी मुश्केली अने अमारं ग्रामानुग्राम विहरण आ बंने कारणे आ ग्रंथर्नु मुद्रण घणुं मुश्केल बनी गयूं हतुं. 'जैन आत्मानंद सभा--भावनगर'ना प्रमुख प्रो. खीमचंदभाई चांपशी शाहे आमां घणो रस लई अमदावाद नवजीवन प्रेसमां छापवानी व्यवस्था करी आपी. श्री रतिलाल दीपचंदभाई देसाई पण आमां सहायक थया. लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर अमदावादना अध्यक्ष पं. दलसुखभाई मालवणियाए आना अफरीडींग आदिनी व्यवस्था तेमनी देखरेख नीचे गोठवी आपी ते उपरांत प्रस्तावना माटे उपयोगी ऐतिहासिक आदि सामग्री पूरी पाडवामां पण तेमणे घणी सहाय करी छे. तथा तेमना चिरंजीव रमेशभाई मालवणियाए घणा श्रमपूर्वक आ ग्रंथना प्रफरीडींग आदिनी जवाबदारी संभाळी छे. आ बधानी सहायथी आ ग्रंथर्नु मुद्रण-प्रकाशन सरळ थई शक्युं छे. आ सर्वे महानुभावो प्रति अंतःकरणपूर्वक कृतज्ञताथी मारा धन्यवाद छे. अंतमां, परमकृपाळु परमात्मा श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान तथा मारा अनंत उपकारी पूज्यपाद पिताश्री गुरुदेव ०८ भुवनविजयजी महाराजनी असीम कृपाथी ज आ ग्रंथ- संपादन माराथी थई शक्युं छे तेथी तेमना परम पवित्र चरणोमां अनंतशः वंदना पूर्वक आजे परमपूज्य गुरुदेवनी १५मी पुण्यतिथिए आ प्रस्तावना राणकपुरजी तीर्थमां मूलनायक परमकृपालू परमात्मा श्री ऋषभदेव भगवाननी पवित्र छायामां पूर्ण करवामां आवे छे. निवेदकपूज्यपादाचार्यदेवश्रीमद्विजयसिद्धिसूरीश्वरपट्टालंकारपूज्यपादाचार्यमहाराजश्रीमद्विजयमेघसूरीश्वरशिष्य पूज्यपादगुरुदेवमुनिराजश्रीभुवनविजयान्तेवासी राणकपुरतीर्थ मुनि जम्बूविजय सं. २०२९, महासुदि ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001144
Book TitleStree Nirvan Kevalibhukti Prakarane Tika
Original Sutra AuthorShaktayanacharya
AuthorJambuvijay
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1974
Total Pages146
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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