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________________ १५ दीवसागरपण्णत्तिपइण्णयं [ गा० ७६--८३. कुंडलपवओरि सोलस कूडा] पुव्वेण होंति कूडा चत्तारि उ, दक्खिणे वि चत्तारि । अवरेण वि चत्तारि उ, उत्तरओ होति चत्तारि ॥ ७६ ॥ वइरपभ १ वइरसारे २ कणगे ३ कणगुत्तमे ४ इ य । रत्तप्पभे ५ रत्तधाऊ ६ सुप्पभे ७ य महप्पभे ८ ।। ७७ ॥ मणिप्पभे ९ य मणिहिये १० रुयगे ११ एगवंडिसए १२ । फलिहे १३ य महाफलिहे १४ हिमवं १५ मंदिरे १६ इ य ।। ७८ ।। एएसि कूडाणं उस्सेहो पंच जोयणसयाई ५०० । पंचेव जोयणसए ५०० मूलम्मि उ वित्थडा कूडा ।। ७९ ॥ तिन्नेव जोयणसए पन्नत्तरि ३७५ जोयणाई मज्झम्मि । अड्ढाइज्जे य सए २५० सिहरतले वित्थडा कूडा ॥ ८० ॥ एमं चेव सहस्सं पंचेव सयाई 'एक्कसीयाई १५८१ । मूलम्मि उ कूडाणं सविसेमो परिरओ होइ ॥ ८१ ॥ एगं चेव सहस्सं छलसीयं चेव होइ सयमेगं ११८६ । मज्झम्मि उ कूडाणं विसेसहीणो परिक्खेवो ।। ८२ ॥ सत्तेव जोयणसए एक्काणउयं ७९१ च जोयणा होति । सिहरतले कूडाणं विसेसहीणो परिक्खेवो ॥ ८३ ॥ [गा० ८४-८६. कुंडलपव्वयकूडेसु सोलस नागकुमारा] पलिओवमट्टिईया नागकुमारा वसंति एएसु । तेसि नामावलियं अहकम्मं कित्तइस्सामि ॥ ८४॥ .. तिसीसे १ पंचसीसे २ य सत्तमीसे ३ महाभुजे ४ । पउमुत्तरे ५ पउमसेणे ६ महापउमे ७ च वासुगी ८॥ ८५ ।। थिरहियय ९ मउयहियए १० सिरिवच्छे ११ सोस्थिए १२ इ य । सुदरनागे १३ विसालक्खे १४ पंडुरंगे १५ पंडुकेसी १६ य ।। ८६ ॥ १. एकवीसाई हं० । गणितक्रियाविसंवादी लेखक प्रमादजोऽयं पाठभेदः ॥ २. रा हवंति हं० ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001141
Book TitleDivsagar Pannatti Painnayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Suresh Sisodiya, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1993
Total Pages142
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_anykaalin
File Size6 MB
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